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भारत में वेश्यावृत्ति

विवाह नाम की संस्था अस्तित्व में आने से पहले से ही वेश्यावृत्ति का अस्तित्व मानवीय जीवन में है, लेकिन अब यह शोषण और हिंसा का पर्याय बन गया है। भारतीय समाज में वेश्यावृत्ति वर्जित है और वेश्याएँ एक अवांछित वर्ग हैं। यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है और इसका समाधान भी आसान नहीं। महिलाओं के ख़िलाफ़ पुरुषों द्वारा की जाने वाली हिंसा के अन्य रूपों की तरह, यह एक लिंग-विशिष्ट घटना है और इसकी शिकार अधिकांश महिलाएँ हैं, जबकि अपराधी लगातार पुरुष हैं।

भारत में वेश्यावृत्ति कोई नई घटना नहीं है। यह वेदों के समय से लेकर ब्रिटिश शासन तक हर युग में यहीं रही है। ऋग्वेद में ऐसे कथन हैं जो इंगित करते हैं कि वेश्यावृत्ति उस समय अस्तित्व में थी। मुस्लिम युग में भी वेश्यावृत्ति को स्वीकार किया गया था, अकबर के शासनकाल के दौरान, वेश्याओं के लिए शैतानपुरा नामक एक अलग इलाक़ा था। इस समय वेश्यावृत्ति शाही संरक्षण में फली-फूली। जब यूरोपीय भारत में आए, तो देह व्यापार के केंद्र बंदरगाहों पर स्थानांतरित हो गए, जिससे तटीय क्षेत्र में वेश्याओं की संख्या में वृद्धि हुई और बड़ी संख्या में वेश्यालयों की स्थापना हुई। ब्रिटिश सैनिकों के लिए, अधिकांश अस्थायी सैन्य आवास क्वार्टरों में रेड-लाइट इलाक़े बनाए गए थे।

यह महिलाओं के लिए एक अत्याचारी पेशा है, क्योंकि वे या तो सक्रिय रूप से या निष्क्रिय रूप से इसमें मजबूर हैं। इसका कारण यह है कि उनके परिवारों द्वारा उन्हें या तो बेच दिया गया या बाल वेश्याओं के रूप में तस्करी की गई। इस तरह ग़रीब महिलाओं का शोषण किया जाता है और उन्हें सेक्स-वर्क के लिए मजबूर किया जाता है। शादी या काम की संभावनाओं की आड़ में इन वंचित महिलाओं को या तो ज़बरदस्ती धकेला जाता है या फिर उन्हें फुसलाया जाता है। आज के भारत में सेक्स उद्योग की प्रति वर्ष 40,000 करोड़ रुपये की क़ीमत है, लगभग 30 प्रतिशत यौनकर्मी नाबालिग हैं, शोषक लगभग 11,000 करोड़ रुपये कमाते हैं।

भारत में संगठित वेश्यावृत्ति जैसी गतिविधियों को अवैध माना जाता है लेकिन यह गुप्त रूप से संचालित होता है। सेक्स वर्कर को अकेले काम करना पड़ता है, जैसे कि अगर उनमें से दो भी एक साथ काम कर रहे हों तो इसे एक वेश्यालय माना जाएगा जो भारत में अवैध है। भले ही भारत में एक वेश्यालय का संचालन अवैध है, फिर भी सरकार ने उन्हें निर्धारित करने और उन्हें तोड़ने के लिए बहुत कम प्रयास किए हैं।

संविधान, भारतीय दंड संहिता, 1860 और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत वेश्यावृत्ति के बारे में कई क़ानून हैं। संविधान के अनुसार, समानता संरक्षण और अन्य स्वतंत्रता जैसे कि जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अलावा, मानव तस्करी और जबरन श्रम के निषेध की रक्षा करता है। साथ ही जैसा कि संविधान के भाग IV में उल्लेख किया गया है कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में राज्य को अन्य बातों के अलावा यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रत्येक व्यक्ति को लिंग के बावजूद निर्वाह के पर्याप्त साधनों का समान अधिकार प्राप्त हो। भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 366 खंड (A) [viii] अवैध यौन सम्बन्ध के लिए एक नाबालिग लड़की की ख़रीद और उसके लिए सज़ा से सम्बन्धित है। इसी क़ानून का खंड (बी) किसी भी तरह के यौन कार्य के लिए दूसरे देश की लड़की को हमारे यहाँ लाने से सम्बन्धित है। फतेह चंद बनाम हरियाणा राज्य [ix] में, एक व्यक्ति पर धारा 366 के तहत वेश्यावृत्ति के लिए एक नाबालिग लड़की को ख़रीदने का आरोप लगाया गया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 372 [x] और 373 [xi] एक नाबालिग लड़की को बेचने का अपराधीकरण करती है।

लेकिन, क़ानून इस पर चुप है कि क्या वेश्याओं को शारीरिक चोट पहुँचाने के लिए वेश्यालय मालिकों द्वारा ग्राहकों को दंडित किया जाना चाहिए। इसमें कंडोम के उपयोग की आवश्यकता और इसमें यौनकर्मियों की स्वास्थ्य देखभाल के प्रावधान शामिल नहीं हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई घातक बीमारियाँ या अवांछित गर्भधारण फैलता है।

हाल के दिनों में रेड लाइट एरिया की संख्या में वृद्धि हुई है, वेश्यालय आधारित वेश्यावृत्ति कम हो रही है। दस प्रकार की वेश्याओं की भी पहचान की गई है जैसे सड़क पर चलने वाली, धार्मिक वेश्याएँ, वेश्यालय में वेश्याएँ, गायन और नृत्य करने वाली लड़कियाँ, बार, मसाज पार्लर और कुछ कॉल गर्ल हैं। वेश्यावृत्ति के कारण इस बात के प्रमाण बढ़ते जा रहे हैं कि कम से कम वेश्याएँ या तो स्वेच्छा से या संगठित गैंगस्टर द्वारा सुखद भविष्य का झाँसा देकर और पुलिस की मिलीभगत से उन्हें फँसाकर महिलाओं और लड़कियों को बलपूर्वक देह व्यापार में शामिल करती हैं।

जो लोग वेश्यावृत्ति में रहना चाहते हैं, उन्होंने आय के अभाव, उनकी सामाजिक अस्वीकार्यता, पारिवारिक रीति-रिवाज़ों, ग़रीबी, अस्वस्थता को कारण बताया है और इस प्रकार, वे वेश्यावृत्ति को अंतिम रूप में जारी रखना चाहते हैं। लेकिन यदि विकल्प उपलब्ध हैं और समाज उन्हें स्वीकार करने के लिए इच्छुक है, तो वे ख़ुशी-ख़ुशी अपने अतीत को त्याग देंगे और जीवन के एक नए तरीक़े से जीने के लिए शुरू करेंगे।

न्यूज़ीलैंड जैसे देश हैं जिन्होंने पूरी तरह से इस कार्य को ग़ैर-अपराधीकरण की तरह अपनाया है और भले ही तस्करी में वृद्धि की उम्मीद थी, फिर भी यौनकर्मियों की संख्या वही रही। बल्कि ग़ैर-अपराधीकरण से वहाँ अपने अधिकारों की जागरुकता से यौनकर्मियों की भलाई में वृद्धि हुई है। एम्स्टरडम जैसे उन्नत शहरों में ये क़ानूनी है, इतना सामान्य है कि टूरिस्ट अपने परिवारों के साथ भी सहजता से सेक्स संग्रहालयों के सामने तस्वीरें खिंचाते हैं।

सेक्स-वर्क को वैध बनाने को लेकर यह वैचारिक बहस कभी न ख़त्म होने वाली लगती है। सामान्य भारतीयों के लिए वेश्यावृत्ति से जुड़ी औरतें उनके लिए एक गाली हैं, लेकिन ग्राहकों के लिए उनके पास कोई शब्द ही नहीं। दुनिया में वेश्यावृत्ति सबसे पुराने व्यवसायों में क्यों है ये सोचने और समझने का माद्दा आम लोगों में नहीं है।

लेकिन एक बात सबको स्वीकार करनी चाहिए कि सेक्सवर्कर भी बराबर नागरिक हैं, कहीं बेहतर इंसान भी।

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