यायावर प्रेमी
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
मेरे यायावर प्रेमी
आज कल हर वक़्त अंतःकरण
कृतज्ञता से भरा रहता है
जल, पृथ्वी, नक्षत्रों, मेघों से
और सबसे ज़्यादा तुमसे
इन दिनों तुम्हारी यात्राओं की तस्वीरों में
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा देखना कितना सुखद है
ख़ुश हूँ कि तुम पैरों पर नहीं परों पर चलते हो
एक अवसाद से घिरे मन को
ख़ुशगवार करने के लिए
इतना ही बहुत है कि
इस पृथ्वी के एक हिस्से में तुम भी हो
और तुम्हारा होना भर ही
ज़िन्दगी की बदइंतज़ामी को व्यवस्थित कर देता है
प्रेम की प्रथाएँ जानने वाले मन
जानते हैं कि मौन में कैसे ख़ुद को कैसे
सिंचित किया जाता है
मेरे भीतर कभी कभी
तुम्हारे नाम के अनुरूप
एक उज्ज्वल और भव्य प्रतिबिंब उतरने लगता है तो
मैं ध्यानस्थ होकर बैठ जाती हूँ
“ख़ुद की तलाश में”
लेकिन आँखें बंद करके भी मुझे
सिर्फ़ तुम मिलते हो
और होश की दुनिया में
मैं तमाशा बन जाती हूँ
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