दीर्घतपा
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’1 Jan 2022 (अंक: 196, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
दीर्घतपा नाम की स्त्री
निकल पड़ी प्रेयस के देश
की तरफ़
समस्त जगत को भग्न वस्तु की तरह त्याग कर
उलझा हुआ मानचित्र
प्रिय की खोज का संकल्प
विरह का ज्वर
और पछुवाँ बयारों की शीत
बनते उसके सहचर
नतशिर पड़ी रहती दीर्घतपा
उन्मार्जन करती रहती अपने घावों का
तीर्थरूप हो चुकी
उस कल्लोलिनी के तट पर
जहाँ कभी प्रियतम ने स्नान किया था
इस यात्रा में यदा कदा जब
हिमालय की शिलाओं पर
प्रेयस के चरण चिन्ह मिल जाते
तो वो प्रदक्षिणा करती रहती
असंख्य पहर
समीपता की लालसा में ध्वस्त हृदय
जब दीर्घनाद करता तो
पर्वतों के वक्षस्थल पर
कंदराएँ प्रकट हो जातीं
निःश्वासें टकरातीं जब चीड़ के पेड़ों से तो
प्रकट हुई वनाग्नि
उसकी विरहाग्नि के समक्ष नगण्य होती
जब नदी के जल में वो देखती स्वयं का प्रतिबिंब
और मुक्त करती बालों से
उजास पुष्प
तो चंद्र रास्ता दिखाने आ जाता
प्रियतम की तरफ़ की यात्रा
प्रकृति का उत्सव है
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