शाक्य की तलाश
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’15 Aug 2020 (अंक: 162, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
कितनी यायावरी, कितनी दीवानगी और कितना ध्यान, तप
"शाक्य" की तलाश में
भस्मीभूत हुआ ये मुख
धारणाओं के विफल अनुष्ठान
विचारों की अवांछनीय खरपतवार
विकारों की बहती प्रचंड धार
अव्यक्त संवाद रचने में मिली हार
मन खोजता रहा निर्मन को
परछाई ढूँढ़ती रही दिनकर को
अंतःकरण उस "विराट" को छू न पाया
कितने उपद्रव उठाये चलती रही
अंततः "अक्रिया" की ठोकर से
चेतना की सतह पर पड़ी दरार
और फूट पड़े मेरे अंतस से
"शाक्य" बन कर जलप्रपात
निकटता की सघनता इतनी कि
चैतन्य ने ले लिया विस्तार
अंततः हुई युगों की क्षुधा शांत
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अनकही
- अवधान
- उत्सव
- उसका होना
- कबीर के जन्मोत्सव पर
- कबीर से द्वितीय संवाद
- कबीर से संवाद
- गमन और ठहराव
- गुरु के नाम
- चैतन्य महाप्रभु और विष्णुप्रिया
- तुम
- दीर्घतपा
- पिता का पता
- पिता का वृहत हस्त
- पैंडोरा बॉक्स
- प्रेम (अनुजीत ’इकबाल’)
- बाबा कबीर
- बुद्ध आ रहे हैं
- बुद्ध प्रेमी हैं
- बुद्ध से संवाद
- भाई के नाम
- मन- फ़क़ीर का कासा
- महायोगी से महाप्रेमी
- माँ सीता
- मायोसोटिस के फूल
- मैं पृथ्वी सी
- मैत्रेय के नाम
- मौन का संगीत
- मौन संवाद
- यात्रा
- यायावर प्रेमी
- वचन
- वियोगिनी का प्रेम
- शरद पूर्णिमा में रास
- शाक्य की तलाश
- शिव-तत्व
- शिवोहं
- श्वेत हंस
- स्मृतियाँ
- स्वयं को जानो
- हिमालय के सान्निध्य में
- होली (अनुजीत ’इकबाल’)
यात्रा वृत्तांत
सामाजिक आलेख
पुस्तक समीक्षा
लघुकथा
दोहे
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं