बुद्ध आ रहे हैं
काव्य साहित्य | कविता अनुजीत 'इकबाल’15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
बुद्ध आ रहे हैं द्वार पर
भिक्षापात्र हाथ में लिए
उनकी पदचाप की ध्वनि में
समस्त सृष्टि का मौन
गुंजायमान है
शून्यता से भरे पात्र में
स्वयं को दान करना चाहती हूँ
पर, हे बुद्ध
मन लज्जाजनक दुविधा में
कंपायमान है
बनती हूँ कभी सुजाता
कभी प्रियंवदा और आम्रपाली
अनंत जन्मों से आत्मा
अनवरत यात्रा में
चलायमान है
शून्यालय के महासागर में
स्थान मिले
अंतस की एकाकी अलकनंदा
इस अभिलाषा में
गतिमान है
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