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कैसा होगा यह साल

फिर आया है नया साल
शुभकामनाएँ मिली अपार
इस साल क्या होगा नया
विकल मन सोचता बारंबार! 
 
आएगा जीवन में नवल बसंत
होगा क्या विपदाओं का अंत
कूड़ा बीनते हाथों में
आएँगी पोथियाँ अपार
भूख, बेबसी, लाचारी का
क्या होगा सदा के लिए अंत
बेरोज़गार युवा
न होंगे अवसाद का शिकार
भाँग मसलते उनके हाथ 
करेंगे कोई नवाचार
क्या पाएगा किसान अपना हक़
न होगा आत्महत्या को मजबूर 
धरित्री सुत की विवशता
देख पाएगी क्या सरकार! 
 
वह चिड़िया जो
बाज़ से भयभीत हो 
दुबकी है पिंजरे में
क्या उड़ेगी पंख-पसार
बेझिझक, निडर 
अपने सँकरे आसमान पर
गई थी जो दाना लेने
लौट पाएगी अपनी डाल पर
या फिर दबोची जाएगी
किसी बाज़ के पंजों तले
क्या इस साल कोई अंकिता
न होगी फिर बदनीयती का शिकार! 
 
दो हंसों का जोड़ा
क्या विहार कर पाएगा
मानसरोवर में
होगी प्रेम की इजाज़त
जाति, वर्ण से ऊपर उठकर
करेगा उन्हें समाज स्वीकार 
साथ जीने की तमन्ना
होगी साकार 
या फिर चढ़ा दी जाएगी
किसी एक की बलि
जाति के नाम पर! 
 
मानव की लालसा तले
सूख चुके जो धारे-नौले
बहता था जिनसे 
मीठा-मीठा जीवन-अमृत 
क्या फूट पड़ेगा स्रोता फिर से 
बटोही की बुझेगी प्यास! 
झाड़-झंखाड़ों का है डेरा
ऊसर धरती में चहुँ ओर 
क्या फिर से होगी
वसुंधरा हरी-भरी
पीली-पीली सरसों खेतों में 
बिखरेगी आभा अपार
 
पलायन का दंश झेलते
उजड़ते गाँव बारंबार
उजड़ी बाखलियाँ होगी फिर से आबाद
या फिर खंडहर होने की कगार 
युद्ध की विभीषिका
हथियारबंदों का अंबार 
गोला-बारूद में तब्दील शहर
आक्रांताओं का है क़हर
दो बाहुबलियों की लालसा
न करेगी जीवन का अंत
गूजेंगी किलकारियाँ फिर से 
आएँगे उत्सव के पहर
क्या फलने-फूलने दिया जाएगा
जीवन का अप्रतिम बसंत? 

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टिप्पणियाँ

Harshita Bohra 2023/11/01 02:21 PM

मैम आप हमारे लिए प्रेरणादायी हैं । आपकी रचनाएं पड़कर बहुत ही अच्छा लगता है।

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