सँकरा आसमान
काव्य साहित्य | कविता डॉ. ममता पंत15 Jul 2023 (अंक: 233, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मौन का आगमन
ऐसे ही न था जीवन में
जीवन के थपेड़ों ने
बना दिया था समझदार
इतना कि चुप रहना सीख लिया
और कब मौन ने आकर जकड़ा
पता ही न चला
वैसे ही जैसे
जकड़ा था प्रेम जाल ने
जिससे आज तक
नहीं निकल पाए
खिल उठा था चेहरा
जिरेनियम की तरह
ख़्वाबों के पर लगा
उड़ने लगी आसमान में
आसमान सँकरा ही रहा
स्त्रियों के लिए
नहीं मिल पाई जगह कभी
उनके परों को फैलाने की
स्वप्न का सब्ज़-बाग़
होता रहा धराशाई
अधकटे पंखों वाली बुलबुल सा!
फड़फड़ाता रहा मौन
अंदर ही अंदर . . .
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