खोखले दावे
काव्य साहित्य | कविता डॉ. ममता पंत15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
डींगें हाँकता सिस्टम
महिला सुरक्षा की
तमाम दावे खोखले
खुले आसमां के नीचे
वहशी दरिंदे
घूमते हैं बेख़ौफ़
स्याह रातों में
दरिंदगी को दे अंजाम
करते हैं अट्टाहास!
निर्भया, पिंकी, नन्ही कली, अंकिता और भी कई . . .
जुड़ते जाएँगे लिस्ट में
चिढ़ाते रहेंगे मुँह
यूँ ही
सिस्टम को
जो नहीं तोड़ पा रहे व्यूह
दरिंदगी का
वो नित नया जाल बिछाते रहे
जिससे जूझती-उलझती
अंततः तोड़ देती हैं दम
नहीं निकल सकतीं
रात को अकेली
अब घर पर भी असुरक्षित
उनके लिए संसार
एक भयावह जंगल
जहाँ घात लगाए बैठे
विक्षिप्त जानवर
नित नए रूप धर
बैठे हैं नोचने को तैयार . . .
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