अलविदा
काव्य साहित्य | कविता रचना श्रीवास्तव13 Mar 2014
छत की मुँडेर
पर बैठी मैं
पैर हिलाती हुई
अपने दर्द को
सहलाती पुचकारती
उससे पूछती हूँ
क्यों रे
मुझसे तेरा दिल न भरा
कभी तो मेरा साथ छोड़ा होता
वो ख़ामोश सुनता रहा
मै नीचे उतर आई
आँगन से देखा
वो अभी भी मुँडेर
पर बैठा था
उनसे कहा "अलविदा"
और कूद गया
गली में वो बेजान पड़ा था
आँसू मेरे
पलकों की सलाखें पकड़
झाँकते रहे
मै अंदर से एकदम खाली थी
क्योंकी मेरे पास
इस दर्द आलावा कुछ था ही नहीं
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