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पॉल की तीर्थयात्रा

समीक्ष्य पुस्तक : पॉल की तीर्थयात्रा
लेखक : अर्चना पैन्यूली
प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज़
मूल्य : 265 रु. (पेपर बैक)
पृष्ठ संख्या : 192

‘पॉल की तीर्थयात्रा’ अर्चना पैन्यूली का राजपाल एण्ड सन्ज़ से 2016 में प्रकाशित तीसरा उपन्यास है। इससे पहले ‘परिवर्तन’ भारतीय पृष्ठभूमि पर और ‘वेयर डू आई बिलांग’ विदेश की पृष्ठभूमि पर लिखे गए उपन्यास हैं। 

तीर्थयात्रा एक धार्मिक अनुष्ठान है। यह एक प्रेमी पति की मृत पत्नी के प्रति अभूतपूर्व श्रद्धांजलि है। मृत पूर्व पत्नी के प्रेम में निमज्जित पॉल की यह तीर्थ यात्रा उसे अतल गहराइयों से सराबोर कर देती है- “दीप्त प्रकाश पुंज मेरे हृदय के अन्तर्मन में कौंध गया। इतनी सुखद अनुभूति! मुझे अहसास हुआ कि भगवान साक्षात मेरे करीब, मेरे अति निकट हैं- परम शान्ति, एक दिव्य ज्योति के रूप में।“ (पृष्ठ 192)    

पुराणों में राधा-कृष्ण का रास-रंग से भरा प्रेम है। वेलेंटाइन-डे मनाया जाता है। बाजीराव मस्तानी की प्रेमकथा है, लैला-मजनू, शीरी-फरिहाद, रोमियो-जूलियट, सलीम-अनारकली. . . और यहाँ पॉल और नीना की प्रेमकथा है। यह न किशोर प्रेम  है, न कोर्टशिप वाला। विवाह, तलाक़ और तूफ़ानों से गुज़रने के बाद भी प्रेम जीवित है।   

56 वर्षीय नायक पॉल को भूतपूर्व सास, नीना की माँ शीला फोन द्वारा नीना की पहली पुण्य तिथि के धार्मिक आयोजन की सूचना देती है और वह आयोजन स्थल सिद्धि विनायक मंदिर तक 108 किलोमीटर की 28 घंटे पद यात्रा कर उसे श्रद्धांजलि देने का संकल्प करता है। तीर्थयात्रा का संबंध धर्म और आत्मतत्व से रहता है, अर्चना पैन्यूली ने नायक पॉल की इस यात्रा को हृदय के उदात्त, शुद्ध भावों से जोड़ा है। यह रोमियो, मजनूँ, सलीम की परंपरा से आगे की स्थिति है। पॉल मृत पत्नी के लिए धन-दौलत ख़र्च कोई ताजमहल तो नहीं बनवाता, पर उसकी यह साहसिक यात्रा अपने में एक मिसाल है। साहिर लुधियानवी ने कहा है, ’इक शहंशाह ने बनाकर ताजमहल, हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक’ और अर्चना पैन्यूली ने भी एक सांसारिक फकीर और मनसा अमीर आदमी के रूप में इस प्रेमी पति पॉल का चित्रण किया है। 

पॉल भारतीय धर्म दर्शन में 108 के महत्व से परिचित है- तुलसी की लकड़ी की जपमाला में 108 मणियाँ, पहाड़ों पर स्थित अनेक मंदिरों की 108 सीढ़ियाँ, बौद्ध मंदिरों में नव वर्ष के आगमन पर बजने वाली 108 घंटियाँ, समुद्र मंथन में 54+54=108 देवताओं और असुरों द्वारा अमृत निकालना। वह 12 मई को प्रात: चार बजे निकलता है। रास्ते में राहगीरों की मदद करता जाता है- सड़क से काँच के टुकड़े उठाता है, बूढ़े व्यक्ति के गिरे पैकेट उठाता है, अंधे को सड़क पार करवाता है, एक महिला की कार का टायर बदल देता है, एक ठिठुर रहे वृद्ध को अपना स्वेटर उतार कर दे देता है। रास्ते में जूते टूट जाते हैं, डरावनी सुनसान रात आती है, सामान चोरी हो जाता है- ड्रेस, वालेट, 2 हज़ार क्रोनर, क्रेडिट कार्ड, ड्राइविंग लाइसेन्स, चाबियाँ, आईफोन चार्जर । इन अट्ठाईस घंटों में उसकी चेतना समग्र अतीत जीवन की यात्रा पर भी निकाल रही है।       

कथा प्रेम भाव और प्रेम के अभाव की है। 56 वर्षीय प्रेमी पॉल पहली पत्नी सौंद्रा के साथ तीन और 42 की उम्र में शादी कर दूसरी पत्नी नीना का साथ सात– यानी कुल दस वर्ष का गृहस्थ जीवन व्यतीत करता है लेकिन गृहस्थ और प्रेम भाव को संरक्षित नहीं कर पाता। नीना भी पहले पति ओलिवर के साथ कोई सवा साल, दूसरे पॉल के साथ सात साल और तीसरे प्रेमी पीटर के साथ थोड़ा सा समय ही रह पाती है। पहला तलाक़ 25 में, पुनर्विवाह 33-34 में, सात वर्ष बाद तलाक और फिर प्रेमी. . .। क्या पॉल, क्या नीना- दोनों बार-बार प्रेम के लिए प्रयोग करते हैं और बार-बार असफल होते हैं? 

पॉल और नीना के इस रिश्ते का उदात्त प्रेम धीरे-धीरे गहरे विषाद में बदलने लगता है। दोनों के देश और संस्कृति अलग थी, आर्थिक स्तर और आयु में भी काफ़ी फ़र्क था। दोनों अपने अतीत से जुड़े थे- नीना कुछ ज़्यादा, पॉल कुछ कम। कहीं भी जाते लोग गोरे यूरोपियन पुरुष और साँवली भारतीय स्त्री को अलग ढंग से ही देखते। देवरानी लारा ‘इंडियन बहू’ कहकर उसकी खिल्ली उड़ाती है। करीना, जोहाना सौतेले पिता का कभी भी मज़ाक उड़ा देती हैं। वह नीना के पिता का बिजनेस सँभालने से भी इंकार कर देता है। पॉल को अपनी पारंपरिक स्कॉटिश पोशाक पहनना बहुत पसंद है, भले ही नीना को उसकी धारीदार स्कर्ट घाघरा ही लगती है। 

तलाक, पुनर्विवाह भले ही उस जीवन का सहज अनिवार्य अंग हों, लेकिन इस की वेदना बच्चे भी झेलते हैं। जिसे पश्चिम में सिंगल पेयरेंट कहते हैं, भारत में उसे टूटा हुआ घर कहते हैं। टूटे घर का असर ही है कि करीना, जोहाना मानसिक रूप से अस्त-व्यस्त हैं। उनके व्यवहार में उद्दंडता, हठ, आक्रामकता, विद्रोह, अभद्रता, क्रोध, चिल्लाहट, अशिष्टता जैसी बातें समाई हैं। चुनौती यह नहीं कि सौतेले माँ-बाप बच्चों को अपनाएँ, चुनौती यह है कि बच्चे उन्हें स्वीकार करते हैं या नहीं। करीना तो समय रहते सँभल जाती है, पढ़ाई, कैरियर, शादी, बच्चे सब समय पर हो गए, लेकिन जोहाना के अन्तर्मन में बैठ गया कि  तीन पुरुषों में से कोई भी उसकी माँ को समझ नहीं पाया और वह लेस्बीयंस वृति की ओर झुकने लगती है। वह संस्कृति, जहाँ बेटियाँ ख़ुद पिता से दूसरी शादी के लिए कहती हैं- “ममी ने भी दूसरी शादी कर ली। मगर आप अभी तक अकेले हो तो हमें अच्छा नहीं लगता।“ (पृष्ठ 46)  वही बेटियाँ लूसी और ग्रेसी भी विरोधाभासों में जी रही हैं। इस क़ानूनी अस्थायीपन/टूटन  ने रिश्तों को एक नया कड़वा कसैला नाम दिया है- सौतेला पिता, सौतेली माँ, सौतेले भाई-बहन । 

अस्थिरता पॉल के जीवन को ख़ानाबदोश बना देती है। वह स्कॉटलैंड से है। दो शादियों और दो स्त्रियों से सम्बन्ध होने के बावजूद वह अकेला है। जीवन के इस मोड़ पर भी वह फ़क़ीर है। उसके पास एक किराये का दो कमरों का घर, अलग बाथरूम और अपने विसंगत जीवन जैसा ही बेमेल सा फ़र्नीचर है। सोफ़ा-कम-बेड दूसरी पत्नी नीना से मिला, उसी की कार उसकी मृत्यु के बाद उसकी माँ से ख़रीद ली, उस पर बिछी लाल चादर माँ ने दी, दीवान एक मित्र का है, दीवार पर लगी पेंटिंग बहन जूलिया की भेंट है, कुर्सी मकान मालकिन ने दी, किताबों का रैक पुराना किरायेदार छोड़ गया, किचन की गोल मेज़ बेटी लूसी ने ऑन-लाइन ख़रीद कर दी। मात्र दोनों बेटियों की तस्वीर खींच कर उसने अपने ख़रीदे फ़्रेम में लगाई है। घर जो मन में एक साकारात्मक अनुभूति देता है, घर जो मंदिर की तरह होता है, घर जिसे माय स्वीट होम कहते हैं, उसे वही कभी नसीब नहीं होता, हाँ ! बेटियों का आना अवश्य ताज़े हवा के झोंके सा लगता है।

इस 108 किलो मीटर लंबी यात्रा के स्थानों का भी अर्चना पैन्यूली  ने उल्लेख किया है- 

यलेसोपारकन होल्टे, विरम, बाउसविया, हरलेव, तास्त्रुप, रोसकिल्डे काउंटी, औस्टेड, रिंगसटेड, हरलूफ़्मेलगे, नेस्ट्वेड, कारेंबैकवाय, स्लेयेलसेवाय, जीलैंड द्वीप।

अर्चना पैन्यूली कहती हैं, “यूरोपियन होना, इंडियन होना, ब्लैक होना, व्हाईट होना. . .  सब पुराने युग की बातें हैं। हमारी आज की पहचान- हम पृथ्वी गृह के बाशिंदे हैं।“ (पृष्ठ 63) वैश्वीकरण और उसके अच्छे- बुरे प्रभाव यहाँ चित्रित हैं। नीना श्रीनिवासन की शादी डेनिश ओलिवर से होती है। यानी करीना और जोहाना के पिता स्केंडिनेवियन और माँ नीना भारतीय मूल की है। स्कॉटलैंड का पॉल स्कॉट भारतीय मूल की डेनमार्क की नागरिक नीना श्रीनिवासन से एडिनबर्ग में मिलता है और दोनों को ‘लव एट फ़र्स्ट साइट’ हो जाता है और वे शादी कर लेते हैं। नीना के चाचा का लड़का नवीन हॉलैंड में रहता है और एक डच महिला से विवाहित है। पॉल के परदादा के पिता ने भी भारतीय मूल की मराठा युवती राजकुमारी विद्या पाटिल से शादी की थी। इंडियन और यूरोपियन जीन ने मिलकर पॉल को मिडिल- ईस्टर्न बना दिया है और इसका प्रभाव उसकी एक बेटी पर भी है। बहन जूलिया तो एकदम भारतीय दिखती है। डेनमार्क में अनेक मंदिर हैं- हरे कृष्णा मंदिर, बुद्ध टैम्पल, सिद्धि विनायक मंदिर। पॉल डेनमार्क के उस इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाने लगता है, जहाँ कोई सत्तर देशों के छात्र और अध्यापक हैं। नीना के पिता डॉ. रामचन्द्र डेनमार्क के विश्व विद्यालय में पढ़ाते हैं। उसकी माँ- पापा फर्राटे से डेनिश बोलते हैं। उनका बिजनेस ख़ूब चलता है। प्राणायाम करना, स्लम डॉग मिलिनियर फ़िल्म के जुमले ‘जय हो’ को दोहराते रहना पॉल की आदत है । वे भारतीय और पाश्चात्य दोनों पद्धतियों से विवाहसूत्र में बँधते हैं। बालीवुड गीतों के रिमिक्स पर चारों बेटियाँ माँ-बाप की शादी पर डांस करती हैं। पॉल ने कला छात्र के रूप में ग्लासगों में बौद्ध धर्म का अध्ययन किया है, भारतीय चित्रकला और वास्तुकला से वह प्रभावित है, अद्वैत, वेदान्त, गीता को उसने पढ़ा है, भारतीय परम्पराओं और भोजन के प्रति हमेशा उसका अनुराग रहा है।

 विवाह की टूटन के मूल कुछ कारण अर्चना ने दिये हैं, लेकिन इसका समर्थन कहीं नहीं किया। पॉल के परदादा के पिता ने भी भारतीय मूल की मराठा युवती राजकुमारी विद्या पाटिल से शादी की थी और स्वस्थ गृहस्थ जिया। पॉल के पिता, उसके भाई, नीना के माता-पिता- एकल विवाह में बँधें हैं और सुखी हैं। उन्हें मालूम है कि दाम्पत्य के बंधन तोड़ने के लिए नहीं, लड़ाई-झगड़े दाम्पत्य का अंग हैं, स्थायी सुख गृहस्थ में हैं और सब का जीवन पटरी पर रहा है।

अपनी और सौतेली चार बेटियों के होते हुये भी नीना के मन में लड़के की कामना उसे रूढ़ भारतीय/ पितृसत्ताक सोच से जोड़ती है।  वह आई. वी. एफ. से कृत्रिम गर्भाधान का सहारा भी लेती है, भले ही यह सफल नहीं हो पाता।

माना जाता है कि प्रवासी खाए-अघाए लोग हैं। पहली दुनिया में जीने का अर्थ सातवें आसमान को छूना लिया जाता है। मानते हैं कि जीवन का हर सुख उनकी मुट्ठी है। जबकि अर्चना पैन्यूली मानती हैं कि सुख और संपदा दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं। पराये देश, अजनबी लोगों, अलग खान-पान, भिन्न रहन-सहन, पाश्चात्य संस्कृति के साथ सामंजस्य बिठाना कोई खाला जी का घर नहीं है। बहुत बार वे न इधर के रहते हैं, न उधर के। ‘वेयर डू आई बिलांग’ की वेदना उन्हें छोड़ती नहीं।

लेखिका की चिंतनशील प्रवृति आदि से अंत तक बनी है। सूत्र बहुलता उपन्यास को सम्पन्न कर रही है। जैसे :
    • घर परिवार की एक संस्था होती है- बिना परिवार के घर नहीं।   (पृष्ठ 12) 
    • उम्र और बुढ़ापा बस नज़र का फेर है। दस साल से छोटे बच्चे को बीस साल से ऊपर सब बूढ़े लगते हैं। किशोरों को तीस साल से ऊपर के सब बूढ़े लगते हैं। नौजवानों को चालीस से ऊपर के सब बूढ़े लगते हैं।- - - पच्चास से साथ आयु वर्ग के लोग समझते हैं, ज़िंदगी तो चालीस से शुरू होती है। (पृष्ठ 17) 
    • इंसान को अपनी सही उत्पादकता का उपयोग करना चाहिए। अपनी सही कीमत आंकनी चाहिए। (पृष्ठ 18)  
    • एशियन और यूरोपियन नारियों की सुंदरता का अपना-अपना पैमाना है, जैसे सेब और संतरे की अपनी अलग खूबियाँ हैं, उनकी परस्पर स्पर्धा नहीं हो सकती।  (पृष्ठ 23)    
    • पुत्रियाँ तो विशेष होती हैं, उनकी वजह से सिहासन बने व हिले हैं। (पृष्ठ 26) 
    • जब आदमी बूढ़ा होने लगता है तो उस औरत के साथ समय नहीं गँवाना चाहता, जिसके साथ रिश्ते की कोई प्रतिबद्धता नहीं है। (पृष्ठ 32)  
    • आजकल के माता-पिता यह भय खाते हैं कि उनका बेटा एक लड़की से ही इश्क करे, किसी लड़के से नहीं। (पृष्ठ 51) 
    • आज की पीढ़ी प्रतियोगिता पर विश्वास रखती है, जबकि पुरानी पीढ़ी सहयोग पर भरोसा करती थी। (पृष्ठ 51) 
    • जब तुम लंबे समय तक अकेले रहते हो तो समझ नहीं पाते कि किसी को तुम प्रेमवश चुन रहे हो या अपने अकेलेपन से त्रस्त होने की वजह से। (पृष्ठ 68) 
    • बच्चों को स्वतन्त्रता देने से पहले उन्हें सही मूल्य देने ज़रूरी हैं। (पृष्ठ 76) 
    • पति- पत्नी को एक साथ प्रेम नहीं, प्रतिज्ञा रखती है। वचनबद्धता, कटिबद्धता, एक दूसरे का साथ ताउम्र निभाने की शपथ उन्हें एक साथ रखती है। हम हिन्दुस्तानी तलाक का कभी नही सोचते। (पृष्ठ 88)

उपन्यास 25 परिच्छेदों में विभाजित है। 192 पृष्ठों में पॉल की 28 दिन की यात्रा है। प्रथम परिच्छेद में इस यात्रा का संकल्प है और पूरे जीवन के चित्र पॉल के मानस पर उभरते जाते हैं, जबकि हर परिच्छेद का अंत तय यात्रा की सूचना और उपलब्धि के एहसास से होता है। स्मृत्याभास अथवा चेतन प्रवाह शैली में पॉल के जीवन के 56 वर्ष चित्रित हैं।

उपन्यास उद्घोष स्वर में कहता है कि सुख, मन: शांति, ठहराव सम्बन्धों से जुडने में है, टूटन भटकाव- बिखराव का मूल है और संतान तथा समाज के लिए घातक है। 

डॉ. मधु संधु, 
पूर्व प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, 
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर, पंजाब।
madhu_sd19@yahoo.co.in
 

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टिप्पणियाँ

सरोजिनी नौटियाल 2019/11/02 05:16 AM

डॉ मधु संधू द्वारा 'पॉल की तीर्थ यात्रा - अर्चना पैन्यूली' पर की गयी समीक्षा-अन्वेषणा के विस्तार और गहराई, दोनों ने अभिभूत किया. इसमें लिखे के पीछे के अनलिखे और कहे के पीछे के अन कहे को जिस कोमलता से छुआ और भाषा की छलनी से छान कर जिन शब्दों में लिपिबद्ध किया वह दिल को छू जाता है . यह यूँ ही नहीं है कि हम प्रस्तुति को एक ही साँस में पढ़ गये. डॉ संधू को साधुवाद .

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