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अजनबी चेहरे 

कल की ही बात (20 नवंबर2022) है, मैं अपने ही शहर में अपनी बेटी को पुलिस लाइंस के पास कोचिंग छोड़ने गई थी। तब मैंने सोचा, स्कूटी में तेल नहीं है चलो पास में यही पेट्रोल पंप है ले लेती हूँ। रोज़ आते-जाते पेट्रोल पंप पर तेल भरनेवाले पहचानने लगे हैं उन्हीं में से एक ने कहा, "मैडम! स्कूटी यहाँँ पर लगा दीजिए।” 

मैं स्कूटी लगाकर पर्स में से रुपए निकाल ही रही थी, तभी उसने पूछा मैडम, “कितने रुपए का भरना है?” 

मैंने कहा, “दो सौ रुपए का पेट्रोल डाल दीजिए।” 

इतने में एक बुलेट गाड़ी आई, उस गाड़ी पर बैठे व्यक्ति ने कहा, “पाँच सौ रुपए का पेट्रोल भर दीजिए, आज बनारस जाना है।” 

पेट्रोल भरनेवाले से कहकर मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराने लगा। 

एक पल के लिए मैं सोचने लगी इसे तो मैं जानती नहीं हूँ, कौन है? जो मुझे जानता है, दूसरे पल ही मैं भी हँस कर कहा, “चलिए, एक लंबा सफ़र है बुलेट गाड़ी चलाने का शौक़ पूरा हो जाएगा।” 

उसने कहा, “नहीं, मेरा शौक़ नहीं है‌, मेरे पास तो दो पुरानी और भी बुलेट गाड़ी हैं। यह तो आजकल के नए उम्र के लड़कों के लिए नए मॉडल की गाड़ी है। मुझे इसका सिस्टम अच्छा नहीं लगता है।” 

भाई बुलेट गाड़ी में कुछ दिखा रहे थे, जो मेरी समझ से परे था।

मैंने कहा, “हाँ, आजकल यह गाड़ी रोड पर ख़ूब दिख रही है। लोगों में इस गाड़ी का शौक़ बहुत है। मेरे पति ने भी अभी टॉप मॉडल की गाड़ी ली है, सिर्फ़ अपना शौक़ पूरा करने के लिए, जबकि घर में दो गाड़ियाँ थीं। उनको बुलेट गाड़ी चलाने का समय ही नहीं मिलता। दिन भर तो हाईकोर्ट में व्यस्त रहते हैं, शाम को बुलेट लेकर निकलते हैं। 

“इंसान को अपना शौक़ पूरा कर लेना चाहिए। 

उसने फिर कहा, “नहीं, मैडम! मुझे कोई शौक़ नहीं है। मैं तो बनारस एक दरोग़ा जी के शादी में जा रहा हूँ। 
सोचा, कार ले जाने से अच्छा! बुलेट गाड़ी से चला जाऊंँ। लंबा सफ़र है एक लोग को साथ में लेकर जा रहा हूँ, जिससे मुझे! आराम रहेगा।” 

मैंने कहा, “हाँ, ठीक है। आप लोग एक दूसरे से बात करते हुए आराम से निकल जाएँगे। बनारस की रोड बहुत अच्छी है।” 

उसने कहा, “हाँ, मैडम!” 

फिर कहने लगा मुझसे, “मैं आपको हमेशा देखता हूँ।” 

“मुझे!” आश्चर्य हुआ। मैंने पूछा, “कहाँ पर?” 

उसने कहा, “इसी रोड से लगा पास में मेरी दुकान है। मैं वहीं दुकान पर बैठता हूँ। हर दिन आपको आते–जाते रोड पर मैं देखता हूँ।” 

मैंने हँसकर कहा, “दिनभर इस रोड पर में दस चक्कर लगाती हूँ। तीनों बच्चों को स्कूल से लेना, दो बेटियों को कोचिंग छोड़ना, बेटे को क्रिकेट अकादमी में छोड़ना, बेटियों को कोचिंग से लेकर घर आना, कभी-कभी बेटे को भी क्रिकेट अकादमी से लेने के लिए जाना हो जाता है। दिनभर इसी रोड पर घूमती रह जाती हूँ।” 

उसने कहा, “हाँ, मैडम! आपको देखते ही मैं पहचान गया। अच्छा चलता हूँ नमस्ते!” 

मैंने भी कहा, “नमस्ते! भैया!” 

मैं घर चली आई और मन ही मन सोचने लगी— कभी मैं भी! जब रेंट पर रहती थी, तो सड़क के किनारे घर था। मैं भी ठंडी में धूप लेने के लिए अपनी दोनों बच्चियों के साथ बालकनी में आती थी। वहीं धूप में बैठ कर दोनों छोटी बच्चियों की तेल-मालिश करती थी और रोड पर आते-जाते कुछ अजनबी चेहरे याद हो गए थे। जो प्रतिदिन ऑफ़िस के लिए महिलाएँ घर से निकलती थीं और शाम को उसी रास्ते से घर को लौटते थीं, मैं उन्हें बड़े ध्यान से देखती थी, और मन ही मन में सोचती थी, काश! मैं भी! नौकरी के लिए जाती। 

आज मेरे पास नौकरी तो नहीं है, लेकिन मैं नौकरी से बढ़कर अपने घर का कार्य कर रही हूँ। 

अपने बच्चों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हूँ, कहीं ना कहीं मुझ में आत्म-संतुष्टि है। आज मैं अपने कार्य से बहुत ख़ुश हूँ। मैं अपने परिवार में इतनी व्यस्त रहती हूँ, मुझे औरों के लिए समय ही नहीं मिलता। 

मैं प्रकृति से अपार स्नेह करती हूँ, पेड़-पौधे लगाना, किताबें पढ़ना एवं लेखन कार्य करना मेरा शौक़ है। 

कभी-कभी हमारे जीवन में कुछ ऐसा परिवर्तन होता है जो राह चलते अजनबी चेहरे भी हमारे जीवन को एक नई दिशा दे जाते हैं, हमारे मन में उम्मीद की किरण जगा जाते हैं, और ऐसे राह चलते अजनबी चेहरे द्वारा दी गई सीख को हम कभी नहीं भूलते। 

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