ज़िंदगी की रफ़्तार
काव्य साहित्य | कविता चेतना सिंह ‘चितेरी’1 Nov 2022 (अंक: 216, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
तेज़ रफ़्तार से मैं चलती रही,
कभी पीछे मुड़ के देखा नहीं,
करना है जीवन में बहुत कार्य,
घर-परिवार से लेकर बाहर तक
मैं तेज़ रफ़्तार में दौड़ती रही,
तनिक भी नहीं किया आराम,
समय एक दिन वह भी! आया,
जब मुझे अपनी ज़िम्मेदारियों से
छुट्टी मिली,
फिर मैं, सोचने लगी—
ज़िंदगी कितनी तेज़ रफ़्तार से निकली गई,
सब को सँभालने में, मैं अपने को भूल गई,
हो गए, मेरे बाल भी कितने सफ़ेद,
झुर्रियाँ चेहरे पर साफ़ झलक रहीं,
समय की रफ़्तार कभी रुकती नहीं,
थोड़ा मैं, सोचते-सोचते भावुक हो गई,
फिर सँवारने लगी अपने को,
दुलार करने लगी नातिन को,
तेज़ रफ़्तार से चलने के बाद,
मेरे विश्राम की घड़ी थी,
सुकून से बैठी
मैं अपने परिवार की हर सदस्यों की बात सुनती थी,
हंँसती, खिलखिलाती, ज़िंदगी की रफ़्तार चलती जाती,
मैं हर उस पल को जी लेना चाहती,
जब समय नहीं था मेरे पास,
मैं अपनों के साथ समय बिताती हूँ,,
बात करती हूँ, उसी रफ़्तार की
जो गुज़र गए, वह लौट के न आने वाले,
ज़िन्दगी जियो! थोड़ा समय निकालकर,
नहीं तो, ज़िन्दगी की रफ़्तार यूंँ ही निकल जाएगी,
फिर, मैं सोचूंगी-मैंने ज़िन्दगी! जिया ही नहीं।
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