शून्य
काव्य साहित्य | कविता चेतना सिंह ‘चितेरी’1 Dec 2022 (अंक: 218, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
मैं अपने जीवन से
जब कभी हताश होती हूंँ,
देख शून्य की ओर
अपनी व्यथा सुनाती हूंँ।
मौन होकर वह मुझे सुनता,
मेरे मन का बोझ हल्का होता,
चेतना प्रकाश से कहती—
उसकी चुप्पी ही मेरी प्रेरणा बनती,
फिर, मैं अपनी आंतरिक शक्तियों को
एकत्रित करती हुई,
अपनी उदासी को दूर करते हुए
जीवन में एक क़दम आगे बढ़ती हूँ।
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