बचपन की बारिश, बम की वर्षा
काव्य साहित्य | कविता चेतना सिंह ‘चितेरी’15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बारिश का मौसम,
लगता था सुहाना।
भीगे-भीगे कोमल पत्तों पर,
छोटी-छोटी बूंँदों का गिरना,
खींचती हैं मन को,
बचपन की यादें,
काग़ज़ की कश्ती,
बरखा का पानी।
फूलों पर रंग-बिरंगी,
तितलियों का बैठना,
पंख हिला-हिला कर उड़ना,
लगती थीं कितनी सुंदर।
कहांँ गया वे दिन,
कैसा है यह दौर?
भीगा-भीगा चित्त मोरा,
इधर-उधर भटक रहा,
न कोई ठौर-ठिकाना,
विश्व में युद्ध हो रहा,
मृतप्राय है संवेदना,
मानव अस्तित्व ख़तरे में,
मिसाइल ड्रोन की वर्षा हो रही,
मुश्किल है अब बच पाना,
जागो रे! चेतना!
देखो! चीख पुकार रहे हैं,
हाल बेहाल, फटे हाल है,
दया करो! जन निर्दोष हैं,
जाओ! इन्हें शान्ति का पाठ पढ़ा दो!
बम की वर्षा हो रही, उन्हें अब रोक दो!
सौहार्द, सौमनस्य की भावना हो,
प्रार्थना है-जग में अमन-चैन हो।
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