मेरी ख़ुशियांँ, मेरे घर में
काव्य साहित्य | कविता चेतना सिंह ‘चितेरी’1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
1.
मेरा घर छोटा-सा ही पर,
मेरे घर में रहनेवालों का दिल बहुत ही बड़ा है।
2.
मैं महँगी वस्तुओं से नहीं,
मैं बेला, गुलाब, गुड़हल, चंपा, चमेली फूलों से,
घर को सजा कर रखती हूंँ।
3.
मैं घर से बाहर कहीं जाती हूंँ तो
मुड़-मुड़ के बार-बार घर को देखती हूंँ।
4.
मेरे प्राण घर के कोने-कोने में बसते हैं,
मुझे अपने घर में सुकून मिलता है।
5.
मेरा घर मंदिर है और मेरे माता-पिता भगवान,
रोज़ सुबह–शाम दीपक जलाती हूंँ,
सब ख़ुश रहें यही दुआ माँगती हूंँ।
6.
मेरे घर की रौनक़ हमेशा बनी रहे,
बच्चों को अच्छे संस्कार देती हूंँ,
मैं जानती हूंँ, यही मेरे धन-दौलत हैं,
इन्हीं से मेरे घर की ख़ुशियांँ हैं।
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