कहासुनी
काव्य साहित्य | कविता चेतना सिंह ‘चितेरी’15 Aug 2025 (अंक: 282, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मन से आगे बढ़ना सीखो!
मन से मिलना सीखो!
आपस में क्या लड़ना?
मन न मिले तो दूर हो जाओ!
मन ही मन क्यों किसी को कोसना?
माटी का खिलौना हो, माटी में है मिलना,
किस पर इतना अभिमान करना,
क्या है मेरा इस जग में?
बस मोह का बन्धन है,
यहाँ सुलझे हुए भी उलझे हुए हैं,
दो दिन की है ज़िंदगानी,
तू-तू मैं-मैं क्यों किसी से करना?
तुमने कहा मैंने सुना,
मैंने कहा तुमने सुना,
मन में गाँठ मत रखना,
कहासुनी हो गई तो,
बात को दिल से मत लेना,
अपनों से क्यों झगड़ना?
प्रेम से मिलकर रहना सीखो!
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