हम अपनों के बिन अधूरे हैं
काव्य साहित्य | कविता चेतना सिंह ‘चितेरी’1 Oct 2022 (अंक: 214, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
हम अपनों के बिन अधूरे हैं,
छोटा–सा जीवन!
देखा है हमने
अपनों के बिन ए! ज़िन्दगी! अधूरी है,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
छोटा-सा जीवन!
सपने हैं मेरे बस इन्हीं से,
देखा है हमने,
बिन इनके मेरे सपने अधूरे हैं,
अपनों के बिना ए! ज़िन्दगी! अधूरी है,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
छोटा–सा जीवन!
मेरी ख़ुशियांँ इन्हीं से,
बिन इनके घर कैसा?
देखा है हमने,
वह घर ही अधूरा है,
जिस घर में मेरे अपने ना हों,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
छोटा–सा जीवन!
चेतना अपनों के बिन यह जीवन अधूरा है,
देखा है हमने
अपनों के बिन ए! ज़िन्दगी! अधूरी है,
हम अपनों के बिन अधूरे हैं।
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