प्रसन्न
काव्य साहित्य | कविता चेतना सिंह ‘चितेरी’15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
जीवन में चाहे जितना भी! कष्ट हो,
मैं हमेशा प्रसन्न रहती हूँ,
सुख-दुख सुबह शाम जैसा;
इनका आना-जाना जीवन में लगा ही रहता,
जीवन में चाहे जितना भी कष्ट हो,
फिर भी, मैं हमेशा प्रसन्न रहती हूँ।
मिलती है मुझको प्रेरणा काँटों में खिले फूलों से,
हमने मुरझाना सीखा ही नहीं,
ताउम्र भँवरों की तरह गुनगुनाती रहती हूँ,
मदमस्त अपनी धुन में राग गाती हूँ,
जीवन में चाहे जितना भी! कष्ट हो,
हर हालात में मैं सदा प्रसन्न रहती हूँ।
मिलती है ख़ुशियाँ मुझको अपनों के संग,
उनसे मिलकर मैं प्रसन्न होती हूँ,
लगता है मुझे सबसे अच्छा!
मुझे अपनों से बल मिलता है,
डटकर चुनौतियों का सामना करती हूँ,
जीवन में समस्याएँ चाहे जितनी भी हों,
धैर्यता के साथ समाधान ढूंँढ़ती हूँ,
जीवन में चाहे जितना भी! कष्ट हो,
मैं हमेशा प्रसन्न रहती हूँ।
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