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होली प्लस महिला सशक्तिकरण

 

चूँकि होली के दिन महिला दिवस पड़ गया है तो महिला समाज में अफ़रा-तफ़री सी मची है। वे समझ नहीं पा रहीं कि होली मनानी है, गीत गा-बजा कर नाचना है या सशक्तिकरण की कुछ गतिविधि करनी है। देखिए, अगर होली के रंग में रँग गईं तो सम्भव है कि उन्हें दुःख-दर्द विहीन मान लिया जाए। तब उनका सशक्तिकरण कैसे हो! वे इसके दायरे से बाहर मान ली जाएँगी। मैं कुछ टिप्स दे रही हूँ। आप इनमें से अपने काम की उठा लें। फिर होली और महिला सशक्तिकरण, दोनों मना लें:

अगर होली पसंद है तो यह बात किसी को न बताएँ। बात-बात पर भावुक हो कर बचपन की होली याद करें, भले ही बचपन में आपको एलर्जी के चलते रंगों से दूर रखा गया हो। जब-जब किसी को हैप्पी होली बोल कर विश करें तब-तब, होली के कारण बढ़ गए घरेलू कामों में अपनी व्यस्तता का रोना अवश्य रोएँ। अगर आपको बीपी या शुगर जैसी बीमारियाँ हैं तो यह बताना न भूलें कि आपने अपना ध्यान नहीं रखा क्योंकि आपका तो सारा ध्यान ‘इनकी’, ‘उनकी’ तरफ़ ही लगा रहा। अगर आप ओवर वेट हैं तो यह निःसंकोच हो कर बताएँ कि आप की डाइट तो बहुत कम है किन्तु बच्चे प्लेट में छोड़ते हैं, उस छोड़े हुए खाने का खा-खा कर आदर देने से आपका वज़न बढ़ रहा है। कहती रहें कि आप कितनी परेशान हैं। ये सशक्तिकरण के बिंदु हुए। 

किसीको न बताएँ कि आप जेबों में गुजिया भर कर निकलती थीं और दोस्तों-पड़ोसियों के घरों में जब नाश्ते की प्लेट आती थी तो आप सबसे पहले लपकने वालों में होती थीं। वैसे आपको मीठा कम पसंद है। बड़े हो कर आप आम तौर पर ‘लीजिए’ कहने पर, नमकीन की प्लेट में से एक चम्मच नमकीन ही उठाती आईं हैं। भले ही मन मुट्ठी भर उठाने का रहा हो; मगर होली की बात और है। हुरियाट में मिली छूट का आपने ख़ूब फ़ायदा उठाया। अब यह किसीको न बताएँ। क्योंकि इससे ‘सशक्तिकरण करने वाले’ भ्रमित हो सकते हैं। ये तो पहले की बातें हैं। ये होली के बिंदु हुए। 

आजकल रंगों में हानिकारक केमिकल मिले रहते हैं। रंग खेलने से पानी की बर्बादी होती है। इस तरह का ज्ञान अब कोरोना वैक्सीन की भाँति सब तरफ़ सुलभ है। रंग से अमुक की स्किन में यह वाली ‘पिरोबलम’ हो गई थी और ढमुक की में वह वाली। आपको तो अपना स्वभाव पता ही है। आपने अपनी स्किन की परवाह तब भी नहीं की थी जब यह आपकी दिखाने लायक़ युवा देह पर मढ़ी थी। अब अगर आप उम्र के उस टर्निंग पॉइंट पर पहुँच गई हैं जिस पर लगे माइल स्टोन पर लिखा है ‘हाड़ जलै ज्यों लाकड़ी, केश जलै ज्यों घास’,  तो इसकी तरफ़ से बेपरवाह हो जाएँ। मगर प्रकट में आप यह मान ही लें जो विद्वान बता रहे हैं बल्कि थोड़ा समय निकाल कर आप भी इन्हीं बातों को अपने अंदाज़ में दोहराएँ। विद्वान दिखने का इससे सरल उपाय नहीं। याद रखें वर्ष में ऐसा अवसर एक ही बार मिलता है। सस्ते के चक्कर में घटिया प्रोडक्ट और छूट में मिले गिफ़्ट आइटम के प्रयोग ने आपको आश्वस्त किया है कि आपकी स्किन के रंग को कुछ न होने का! जब तक कि आप ख़ुद न रंग बदलना चाहें। ये होली व सशक्तिकरण, दोनों के फेवर में हैं। 

अब कुछ बातें बताने की भी हो जाएँ। आप यह बताएँ कि लूट-मार, साइबर क्राइम, रिश्वत ख़ोरी जैसे फ़ील्ड में भी महिलाओं ने जगह बनाई है। रिश्वत ख़ोरी में अब वे किसीसे पीछे नहीं हैं। फ़ाइल आगे बढ़ाने या प्रोजेक्ट पास करने हेतु कमीशन के मामले में वे पुरुषों के कन्धे से कन्धा मिला कर आगे बढ़ रहीं हैं। यद्यपि क़ानून का डर समान रूप से दोनों को है। सशक्तिकरण के इन स्याह पक्षों को हिम्मत करके होली मनाने और रसिया गाने में उपयोग करें। 

दिक़्क़त यही है सशक्तिकरण भी मल्टी डायरेक्शनल हो जाता है। इसे शिक्षा, उद्यमिता और रोज़गार जैसी जगहों पर होना था मगर भ्रष्टाचार जैसी जगह पर भी होने लगता है। उच्च शिक्षा में करो तो रैगिंग में दिख पड़ता है। आदि। 

मेरे ख़्याल से मैंने दोनों काम कर दिए हैं। अब आप अपना काम करें। बीलेटेड हैप्पी होली! 

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