पिता
काव्य साहित्य | कविता अनीता श्रीवास्तव1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मेरे होने में पूरे के पूरे हैं वो
वृहद इतने
कि छलक छलक जाते
पिता
किसी कविता में नहीं समाते
##
मेरे पास ऐसा कोई
दिवस नहीं
जो पूरा का पूरा मेरा हो
कौन सा दिन समर्पित करके
पितृ दिवस मनाते
##
भाषा माता से मिली
पिता तहज़ीब बने
शब्द सुमन अर्पित करने
हम अपने शब्द
कहाँ से लाते
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