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लता जी को शब्दांजलि


क्या महाकाल है क्रुद्ध हुआ? 
क्यों कंठ एक अवरुद्ध हुआ? 
संगीत छोड़ कर लावारिस, 
लगता है सुर अब बुद्ध हुआ। 
हे वाणी सुता करूँ वंदन, 
हे स्वर साम्राज्ञी तुम्हें नमन। 
 
चंचलता, मस्ती और प्यार, 
सहज गा दिया गीतों में। 
दिल से दिल की भाषा बन कर, 
इनको फिर गाया मीतों ने। 
तेरे स्वर से आबाद रहेगा, 
सदा मोहब्बत भरा चमन। 
हे स्वर साम्राज्ञी! तुम्हें नमन। 
 
ये देश प्रेम में पगे हुए, 
नग़मे उल्लास जगाते हैं। 
मुर्दा दिल भी जोशीले हो, 
जां देने पर तुल जाते हैं। 
लहलहा तिरंगा कहता है, 
आओ दुश्मन का करें दमन। 
हे स्वर साम्राज्ञी! तुम्हें नमन। 
 
भक्ति में डूबा स्वर सुन कर, 
ईश्वर ही जैसे मिल जाते। 
चित्त शान्ति को पा जाता है, 
मन के दुःख जैसे खो जाते। 
आज वरण कर परम शान्ति का, 
छोड़ा सबको कर लिया गमन। 
हे स्वर साम्राज्ञी! तुम्हें नमन। 

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