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बत्तोरानी की दो बातें

बत्तोरानी को बातों से मतलब। बातें होनी चाहिए। शाम को एक कप चाय के साथ ही गपशप का मन हो जाता है। तो चलिए दो बातें कर लेते हैं। 

पहली बात

चुनाव का माहौल है हमारे वार्ड के भाईसाब जो खड़े हुए हैं। दो-तीन बार घर आ कर पैर छू गए हैं। चुनाव ऐसा मौक़ा है कि उम्मीदवार बना आदमी घर से निकलता है तो ध्यान पैरों पर ही लगा रहता है; वह पैर खोजता रहता है। रास्ते पर बहुत ध्यान नहीं देता। कोई भी गली पकड़ जाए, बस अपने वार्ड की हो। उसमें मिलने वाले पैर भी अपने वोटर के ही होंगे। ‘अपने’ कहते ही मन तरंगित हो उठता है। हाथ की उँगलियों में आँखें उग आती हैं। सजग और फ़ुर्तीली आँखें। मेरे वार्ड का उम्मीदवार मुझे गली में न पा कर मेरे घर की तरफ़ निकल लिया। आते ही चरण स्पर्शमय प्रणाम किया। तभी बच्चा कहीं से कूद पड़ा। नेता जी आदतन झुक गए। उनकी उँगलियों ने पैर जो देख लिए थे। मगर बच्चा चिंघाड़ दिया, “अरे अरे अंकल। मेरे पैर मत छुओ।” वैसे मना तो मुझे भी करना था क्योंकि मैंने पंचायत में वोट डाल कर उँगली काली करा ली थी; अब नगर में वोट नहीं डाल सकते थे। मगर यह सच छुपाने का बड़ा फ़ायदा दिखा। अगर बता देते तो मेरे पैर अनछुए ही रह जाते। वे उनकी उँगलियों पर उगी आँखों को तनकउ न दीखते। 

अब दूसरी बात

ऐसे ही पूछ रहे हैं। आपको आता हो तो बता दीजिए नहीं तो जाने दीजिए। हम किसी से नहीं कहेंगे कि आपको भी नहीं आता। और अगर कह भी दें तो अगले से कौन-सा बनता ही होगा। अब तक जितनों से पूछा किसी से नहीं बना। एक ने सलाह दी है इस प्रश्न पर आप कुछ इनाम रख दीजिए। कुछ ‘इनामी डाकू’ टाइप। जो पकड़ कर लाए उसे इत्ते लाख का इनाम। न पकड़ कर ला सके तो सूचना ही दे जाए। इस पर भी इत्ता नहीं तो उत्ता तो दिया ही जाएगा जित्ते में मुखबिरी का चस्का लगा रहे। एक और का सुझाव है आप इसे एम सी क्यू बना दीजिए। मतलब बहुविकल्पी। शॉर्ट अंग्रेज़ी में और लोग हिंदी में। यही शोभता है सर। सलाह तो यह भी आई कि चूँकि इस प्रश्न का सटीक और संक्षिप्त उत्तर नहीं दिया जा सकता सो आप इस पर निबंध लिखा लें। लेखकों के समूह में निबंध और नेताओं के में इस पर भाषण करा लें। शिक्षक और विद्यार्थी के मध्य इसे आगामी परीक्षा के लिए अनिवार्य बता कर खपा दें। बस इत्तइ सर्किल है अपना। नहीं आ रहा इसीलिए आप मुझे बातों में लगाए हैं। मगर हम भी सतर्क हैं भटकेंगे नहीं। प्रश्न हाज़िर है। उत्तर आता हो तो बता दीजिए शुरू में ही कह आए हम। अरे हाँ प्रश्न तो बताया ही नहीं। प्रश्न है—उम्मीदवार चुनाव में खड़े क्यों होते बैठते क्यों नहीं नहीं? 

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