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ब्यूटीफ़ुल बेईमान

 

समाज का सारा सौंदर्य बेईमानों के कारण है। ये लोग गुणों की खान होते हैं। जितने डूज़ और डोंट्स बचपन में बताए गए थे वे पूरे के पूरे इन्होंने आत्मसात कर लिए होते हैं। तत्कालिक परिस्थिति कितनी भी दारुण हो, इन्हें डिगा नहीं सकती। बड़े होने की यात्रा ने इनमें ज़रा भी बदलाव नहीं आने दिया बल्कि इनका यह कौशल और अधिक बढ़ा। कोई कूल-किनारा क्षति ग्रस्त नहीं हुआ। इस निष्कर्ष पर पहुँच लिया गया कि धूर्तपनी एक क़ीमती चीज़ है। इसकी जीवन में आवश्यकता पड़ेगी ही। सज्जन वग़ैरह की संगति में यह नष्ट हो सकती है, क्योंकि:

“सठ सुधरहिं सत् संगति पाएँ . . .” 

 अतः इसे मज़बूत आवरण में छिपाया जाना चाहिए। 

अभी कल ही की बात है बेईमान घूमने निकला था कि सामने से आहत जी आते दिखे। बेईमान ने आहत जी के सीधेपन का ख़ूब फ़ायदा उठाया था। क़ायदे से उसे उन्हें देख रास्ता बदल लेना था। फिर भी बेईमान विचलित नहीं हुआ। उल्टा आहत जी की उम्र का लिहाज़ करते हुए उसने उन्हें पालागी कर ली। आहत जी को बेईमान दो बार धोखा दे चुका था। आहत जी का मन किया पालागी के जवाब में आशीर्वाद स्वरूप दो लातें लगाई जाएँ मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया अलबत्ता जो भी कहा उसका मतलब लात लगाने जैसा ही था। कोई और होता तो सुन कर लज्जित होता। ज़मीन में गड़ न जाता तो सीधा खड़ा भी न रह पाता। मगर बेईमान पका हुआ है। ऐसा वैसा नहीं। बिल्कुल आँवे का पका। चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। उल्टे हँस कर कोमल वाणी से बोला, “आप हमारे बड़े हैं मैं आपकी बात का बुरा नहीं मानता।” 

इनकी क्या, बेईमान किसी की भी किसी भी बात का बुरा नहीं मानता। बेईमान अपने बेटे की ससुराल गया था। दहेज़ का सारा माल दबा कर उसने बेटा-बहू को परदेस रवाना कर दिया। फिर इस धुन में कि समधी है, सत्कार कराने उनके घर जा पहुँचा। देखते ही खरी-खोटी सुना कर तर कर दिया समधी ने मगर मजाल है कि बेईमान ने बुरा माना हो। बल्कि उसने कन्धा पकड़ कर समधी को बैठाया उन्हें चेताया ‘इतना ग़ुस्सा सेहत के लिए अच्छा नहीं। खां मखां अटैक वग़ैरह आ जाएगा।’ क्या वह भी आग बबूला हो जाए! न जी, इतनी आग बेईमान में बची नहीं बस क्षिति, जल, गगन, समीर ही बचा उसमें। आग पर वह दुनिया भर से सिद्ध होने वाला अपना स्वार्थ पका कर खा गया। 

बेईमान में वह सब कुछ है जो एक अच्छे आदमी में दिखना चाहिए। अच्छे इंसान को क्रोध नहीं करना चाहिए। बेईमान भी नहीं करता। आप बेईमान को कभी आग बबूला होते नहीं देखेंगे। न ये कभी आपा खोते नज़र आएँगे। न अपशब्द ही इनके मुख से निकलेंगे। बेईमान हमेशा संयमित रहता है। होंठों पर मधुरिम मुस्कान मले रहता है। मीठी बोली बोलता है। ‘ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए’ कबीर की बताई यह बात वह विषम से विषम परिस्थिति में भी नहीं भूलता। उसने समूचे साहित्य से नीति के वचन ले कर उन्हें महीन पीस कर चेहरे पर पोत लिया है। अब कोई डर नहीं कि वह किसी भी कोण से बेईमान दिखे। दिख ही नहीं सकता। चंद मुलाक़ातों में तो हरगिज़ नहीं। 

अब मेरे दूध वाले को ही लीजिए, हालाँकि सब ऐसे नहीं होते होंगे। कुछ दूध वाले दूध के धुले भी हो सकते हैं बस वे आपको न मिले होंगे। आप उसे कितनी भी खरी-खोटी सुनाइये वह बुरा नहीं मानता। भगोनी में जा रही दूध की धार पर एकाग्र रहता है। एक बूँद भी इधर-उधर नहीं गिरने देता। आप उसकी पानी मिलाने की आदत पर खिसियाते हुए चाहे जितनी बूँद ख़ून जला दीजिए। बंदा बुरा नहीं मानता। आप उसे याद दिलाइये पिछली बार वादा किया था तुमने शुद्ध दूध दोगे। वह फिर वादा करता है—देगा। क़सम खाता है। और फिर अपने रास्ते चला जाता है। एक नन्हे बालक का बेईमान से प्रथम परिचय प्रायः दूध वाले की देन है। जगह-जगह खुल रही डेरियों ने अब बड़े शहरों से जीवन का अहम सबक़ सिखाने वाला यह पाठ छीन लिया है। 
 
आप जीवन में कितने ऊँचे उठ पाते हैं यह आपके भीतर उपलब्ध बेईमानी की मात्रा पर निर्भर है। साधारण जीवन स्तर वाले साधारण मात्रा ही रखते हैं। ये आम जन कहलाते हैं। ये उत्तेई बेईमान होते हैं जित्ते में पकड़े न जाएँ। इनकी बे ईमानी क़ानून की किसी धारा की ज़द में नहीं आती। इस बात का ये ध्यान भी रखते हैं। ये राष्ट्रीय त्योहारों पर ऑफ़िस में वितरण के लिए आई मिठाई में से थोड़ी सी बिना बताए रख लेते हैं, घर के नौकरों के लिए। इत्ती छोटी सी चोट्टई से नौकर ख़ुश होता है। ग़रीब के ख़ुश होने से जो बढ़िया बात होती है उससे दुनिया में अच्छाई बढ़ती है। इतने की अनुमति शास्त्र भी देता है। मौक़ा मिलने पर वह बूँदी से लड्डू, लड्डू से मिठाई के डिब्बे और फिर बिना किसी ऐसी चीज़ के ही सीधे मिठाई के बजट पर पहुँच जाता है। यह बे ईमान की उर्ध्व गति है। उन्नति है। 

इनमें एक बात और होती है। ये कम बोलते हैं। जिससे फँसने न पाएँ। एक इज़्ज़तदार ज़िंदगी जीते हैं। इसके उलट बड़े वाले हैं। उनमें बेईमानी की इतनी अधिक मात्रा होती है कि वे कॉन्फिडेंटली सामने वाले को प्रभाव में ले लेते हैं। उसे अपना पिछलग्गू सरीखा बना लेते हैं। ये समाज में विशिष्ट व्यक्ति का दर्जा रखते हैं। ये सीधे परसेंटेज की बात करते हैं। ज़मीनों का खम ठोंक कर अतिक्रमण कर सकते हैं। धोखे से किसीकी ज़मीन अपने नाम करा सकते हैं। थोक में वादे करके मुकर सकते हैं। इनकी इसी योग्यता के कारण ये लोक में आदर पाते हैं और बड़े वाले आदरणीय बन कर सबको बनाते हैं। लोकतंत्र में इनकी महत्ता असंदिग्ध है। राजनीति का ये सौंदर्य हैं। नेतागिरी के सिरमौर और समाजसेवा के आभूषण हैं। 

आप समझ गए होंगे संसार का सौंदर्य किस तरह बेईमानों ने बंधक बनाया है। आप लाख मान लें कि ईमान धर्म बड़ी चीज़ है मगर बे ईमान इसे ख़ब्त से अधिक तवज्जोह नहीं देता। 

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