कड़वी सच्चाई
बाल साहित्य | किशोर हास्य व्यंग्य कविता संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’15 May 2020 (अंक: 156, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
धत्त तेरी की! हाय रे ये ज़माने की मार!
कितना बदल गया संसार, धत्त तेरी की!!
धर्म हो गया अब व्यापार, धत्त तेरी की!
अंधा हो गया ये संसार, धत्त तेरी की!!
पश्चिमी सभ्यता ली उधार, धत्त तेरी की!
भाई को बहन से हो गया प्यार, धत्त तेरी की!!
महँगा कपड़ा बदन उघार, धत्त तेरी की!
मानवता लुट गई बीच बज़ार, धत्त तेरी की!!
मर्द बनते हैं मोहर मार, धत्त तेरी की!
चेहरे पे छपता अख़बार, धत्त तेरी की!!
पढ़ा-लिखा है सब बेकार, धत्त तेरी की!
अँगूठा छाप है कारोबार, धत्त तेरी की!!
मंत्री बन गया पॉकेटमार, धत्त तेरी की!
पीएचडी हैं लगे क़तार, धत्त तेरी की!!
भईया बैठे चूल्हा बार, धत्त तेरी की!
भाभी गईं हैं हाट-बज़ार, धत्त तेरी की!!
मुर्गी निकली छप्पर फार, धत्त तेरी की!
शेर बन गया कुकुर-बिलार, धत्त तेरी की!!
हो गया अपना बंटाधार, धत्त तेरी की!
आदमी बन गया खरपतवार,धत्त तेरी की!!
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