अपनी आँखों के मोती को चुन-चुन उठा लूँ मैं
शायरी | ग़ज़ल संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’15 Jul 2021 (अंक: 185, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
फ़ाईलातुन/फ़ाईलातुन/मुस्तफ़्यलुन/फ़ैलुन
2222 / 2222 / 2212 / 22
अपनी आँखों के मोती को चुन-चुन उठा लूँ मैं।
रुकना यारो थोड़ा कुछ 'औ' भी चोट खा लूँ मैं।
मेरे पलकों के चिलमन में जो मुँह छिपाती है,
उसकी ज़ुल्फ़ों के साये में ये सर छुपा लूँ मैं।
मेरे दिल में हैं लाखों घर पर तू नहीं आना,
हर घर में ग़म ही है तुमको किस घर बुला लूँ मैं।
मैं सबसे अहदो-पैमां भी करता 'हूँ' इस दम पर,
जब भी जी चाहे तो सबसे दामन छुड़ा लूँ मैं।
तूं जिस से मुझ पे हँसता वो तक़दीर है मेरा,
ये मेरा साया है इसको कैसे हटा लूँ मैं।
है चाहत मेरी मुझको कर ले प्यार फिर कोई,
दिल हल्का हो हिजरत में कुछ आँसू बहा लूँ मैं।
रब दिल में शोले हैं, है तू हर बात से वाकिफ़,
आँखों को पानी दे हर चिंगारी बुझा लूँ मैं।
कब के बिछड़े तुम प्यासे दिल के पास हो आए,
है हसरत तेरे होठों से शबनम चुरा लूँ मैं।
मेरे मुंसिफ़ मेरे महमां तेरी इनायत से,
ख़ुश होकर डर लगता है ना ख़ुद को गवां लूँ मैं।
हो ग़र ऐसा मेरे दिन आएँ फिर 'से' बचपन के,
छुप के दादी की बीड़ी को फिर से जला लूँ मैं।
मुझको हर घर की लाचारी दिखती सियासत सी,
हूँ 'बेघर' इतनी आबादी कैसे बचा लूँ मैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
- अपनी आँखों के मोती को चुन-चुन उठा लूँ मैं
- आज फिर सनम हमें उदास रहने दीजिए
- आपके साथ दिल लगाया है
- आसमाँ से कोई ज़मीं निकले
- कहाँ अपने नाम दम पर हम हैं
- कहें कैसे कि मेरे नैन तर नहीं होते
- कि जो इंसाफ़ से नहीं मिलता
- कुछ दुबके जज़ बात का ग़म है
- छोड़ो कहने को सिर्फ़ बातें हैं
- जब भी लोग सीरत देखा करते हैं
- जिगर में प्यास हो तो अच्छा लगता है
- तेरे सपनों का दौर क्या होता
- दिल भर आए तो क्या कीजिए
- दिल लगाना पड़ा दिल दुखाना पड़ा
- दिललगी हो रही है सितम के लिए
- ना जाने क्या गुनाह करने की बात है
- फूल खिलते हैं बाग़ों में जब दोस्तो
- बिसर जाए तेरा चेहरा दुहाई हो
- मुझसे आख़िर वो ख़फ़ा क्यूँ है,
- मेरे दिल में भी आ के रहा कीजिए
- रात की याद में दिन गुज़ारा गया
- सबको सबकुछ रहबर नहीं देता
- सुना है सबको भा चुका हूँ मैं
- हम ने ख़ुश रह के कमी देखी है
- हम ग़रीबों की कहानी आप से मिलती नहीं
- हमने देखे हैं कई रंग ज़माने वाले
- ख़ुद को ख़ुद से ही जोड़ दे मुझको
कविता
- अँधेरों के मसीहा
- आँसू
- आदमी तू बेकार नहीं है
- एक फ़रियाद मौत से भी
- किन्तु मैं हारा नहीं
- कौन तुम्हें अपना लेता है?
- क्रोना
- गिरता पत्थर
- गीत उसका गाता हूँ
- जब हम बच्चे थे
- जीवन तेरा मूल्य जगत में कितना और चुकाना है
- दर्पण
- दिये की पहचान
- फिर मुझे तेरा ख़याल आया
- बढ़ते चलो
- भूल न जाना आने को
- मत पूछो कि क्या है माँ
- मिट्टी मेरे गाँव की
- मैं हार नहीं मानूँगा
- मौसम बहार के
- ये दौर याद आयेगा
- राज़ (संदीप कुमार तिवारी)
- स्त्री (संदीप कुमार तिवारी)
- हृदय वेदना
नज़्म
कविता-मुक्तक
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कविता
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं