सुना है सबको भा चुका हूँ मैं
शायरी | ग़ज़ल संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’15 Nov 2021 (अंक: 193, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
122 222 1222
सुना है सबको भा चुका हूँ मैं।
बहुत ठोकर अब खा चुका हूँ मैं।
उड़ा करता था आसमां में पर,
ज़मीं पे ख़ुद को ला चुका हूँ मैं।
मिले गर वो तो चैन आ जाए,
अरे ख़ुद से उकता चुका हूँ मैं।
तुझे सपने आते 'तो' हैं मेरे!
तिरे दर से अब जा चुका हूँ मैं।
तुझे दिल में ही देखता हूँ अब,
तुझे खो कर अब पा चुका हूँ मैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
- अपनी आँखों के मोती को चुन-चुन उठा लूँ मैं
- आज फिर सनम हमें उदास रहने दीजिए
- आपके साथ दिल लगाया है
- आसमाँ से कोई ज़मीं निकले
- कहाँ अपने नाम दम पर हम हैं
- कहें कैसे कि मेरे नैन तर नहीं होते
- कि जो इंसाफ़ से नहीं मिलता
- कुछ दुबके जज़ बात का ग़म है
- छोड़ो कहने को सिर्फ़ बातें हैं
- जब भी लोग सीरत देखा करते हैं
- जिगर में प्यास हो तो अच्छा लगता है
- तेरे सपनों का दौर क्या होता
- दिल भर आए तो क्या कीजिए
- दिल लगाना पड़ा दिल दुखाना पड़ा
- दिललगी हो रही है सितम के लिए
- ना जाने क्या गुनाह करने की बात है
- फूल खिलते हैं बाग़ों में जब दोस्तो
- बिसर जाए तेरा चेहरा दुहाई हो
- मुझसे आख़िर वो ख़फ़ा क्यूँ है,
- मेरे दिल में भी आ के रहा कीजिए
- रात की याद में दिन गुज़ारा गया
- सबको सबकुछ रहबर नहीं देता
- सुना है सबको भा चुका हूँ मैं
- हम ने ख़ुश रह के कमी देखी है
- हम ग़रीबों की कहानी आप से मिलती नहीं
- हमने देखे हैं कई रंग ज़माने वाले
- ख़ुद को ख़ुद से ही जोड़ दे मुझको
कविता
- अँधेरों के मसीहा
- आँसू
- आदमी तू बेकार नहीं है
- एक फ़रियाद मौत से भी
- किन्तु मैं हारा नहीं
- कौन तुम्हें अपना लेता है?
- क्रोना
- गिरता पत्थर
- गीत उसका गाता हूँ
- जब हम बच्चे थे
- जीवन तेरा मूल्य जगत में कितना और चुकाना है
- दर्पण
- दिये की पहचान
- फिर मुझे तेरा ख़याल आया
- बढ़ते चलो
- भूल न जाना आने को
- मत पूछो कि क्या है माँ
- मिट्टी मेरे गाँव की
- मैं हार नहीं मानूँगा
- मौसम बहार के
- ये दौर याद आयेगा
- राज़ (संदीप कुमार तिवारी)
- स्त्री (संदीप कुमार तिवारी)
- हृदय वेदना
नज़्म
कविता-मुक्तक
बाल साहित्य कविता
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कविता
किशोर हास्य व्यंग्य कविता
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं