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संदीप कुमार तिवारी - मुक्तक - 001

1.
हमें भूलने वाले तो मज़े से चैन के नींद सोते हैं 
क्या सितम है हम फिर भी प्यार के बीज बोते हैं 
वो जो उनके ख़ातिर हज़ार सपने देखे थे कभी 
कम्बख़्त वही आँखों से अब खून के आँसू रोते हैं 

2.
तेरी यादों में याद करता हूँ तेरी यादें 
वही भूली, वही बिसरी, वही बिछड़ी यादें 
मैं तेरी याद में कुछ ऐसे डूब जाता हूँ  
भूल जाता हूँ तेरी याद में अपनी यादें 

3.
कई लम्हें एक लम्हे में सिमट जाते हैं,
मेरी आँखों से कुछ मोती बिखर जाते हैं 
जब भी छाती है संगदिल तेरी यादों कि घटा 
बूँद बनके हम सावन में बरस जाते हैं 

4.
जिस्म की चाह नहीं दिल पुकारता है तुम्हें 
अब भी आजा ओ संगदिल पुकारता है तुम्हें 
बेवफ़ा तू नहीं, मैं ख़ुद ही अपना क़तिल हूँ 
तुम पे मरने को ये क़ातिल पुकारता है तुम्हें

5.
सिर्फ़ दिल तोड़ देते तो कोई बात नहीं होती 
ये कहते हैं कि प्यार में सौगात नहीं होती 
क्यूँ इश्क़ को भी मज़हबी बना देते हैं लोग 
अब कैसे बतायें आँसुओं की जात नहीं होती

6.
यार अब ये आदमी मजबूर कितना है 
चार दिन की ज़िंदगी में दस्तूर कितना है 
इक तेरी याद है जो जिस्म के क़रीब है 
एक तेरा जिस्म है की दूर कितना है

7.
ज़माने में तुम भी सरेआम हो जाओगे 
मुझे ख़रीदोगे और नीलाम हो जाओगे 
इश्क़ इबादत ही है, कोई तहज़ीब नहीं 
कर के तो देखो, बदनाम हो जाओगे

8.
बिछड़कर रूह नींदों से बता कैसे वो सोता है 
फूल को प्यार पत्थर से कहीं ऐसा भी होता है 
तुम्हारे अश्क भी साथी न मेरे काम आएँगे 
ये मेरा दर्द अपना है ख़ामख़ाँ तू भी रोता है

9.
देख तो लिया बाहर से, मेरे अंदर तो देखा ही नहीं 
अरे तुमने अभी दर्द के मंज़र को देखा ही नहीं 
दो बूँद आँसुओं को तुमने नदी का नाम दे दिया 
यार तुमने इन आँखों में समंदर तो देखा ही नहीं

10.
अंधों की तरह आँखें चार मत करना 
तपाक से तुम यूँ ही प्यार मत करना 
आजकल अब फूल ही चुभा करते हैं 
किसी मासूम शख़्स पे ऐतबार मत करना

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