हमें ख़ुदा होना है
शायरी | नज़्म संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
तुम नहीं जानते क्या से क्या होना है,
हर एक रूह को तन से जुदा होना है।
मिलना मिलाना और आश्ना होना है,
और फिर हर बात को ज़ुबां होना है।
रिश्तों का भी अपना जहाँ होना है,
पहले घर, घर से बढ़कर मकां होना है।
हर औरत को एक दिन माँ होना है,
हर बच्चे को एक दिन जवाँ होना है।
कोई जां बनना किसी की जां होना है,
हाँ फ़ना करना भी तो फ़ना होना है!
बस कुछ इमां की ऐसा इमां होना है,
भला करना सभी का भला होना है।
हाँ कुछ फ़ासले को दरमियां होना है,
फिर भी इंसा का मतलब इंसा होना है।
आदमी हो गए फिर और क्या होना है!
मत बनो भेड़-बकरी हमें ख़ुदा होना है।
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