फिर मुझे तेरा ख़याल आया
काव्य साहित्य | कविता संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’15 Nov 2020 (अंक: 169, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
मैंने जब भी जाम उठाया!
मुझे तेरा ख़याल आया।
तन्हाई ने दस्तक दी और दिल डबडबाया,
फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
साँसों के तार टूटने लगे।
हम से हमारे रूठने लगे।
जब किसी ने हाथ पकड़कर हाथ छुड़ाया,
फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
आज सारे उसूल तोड़ दूँगा।
मैं ये दुनिया ही छोड़ दूँगा।
पर ख़ुदकुशी के वास्ते जब ख़ंज़र उठाया,
फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
बहुत हँसे, बहुत ख़ुश रहे।
और तुमसे हम क्या कहें?
बस यूँ समझो जब भी किसी ने दिल दुखाया,
फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
सफ़र में रहें या की भीड़ में रहें।
हम तेरे ख़यालों के नीड़ में रहें।
जब भी तेरे ख़यालों से जाने का ख़याल आया,
तब फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
अब सिर्फ़ ख़्वाबों में तुम्हें पाऊँ।
पीऊँ और मैं पी के लुढ़क जाऊँ।
मैंने अपने घर को जब भी मधुशाला बनाया,
तब फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
ऐ, फिर से दिल दुखाओगी क्या?
तुम! आओगी तो आओगी क्या?
मेरे दिल में तेरे आने का जब भी ख़याल आया
तो फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
मुझे लगा की कोई आया,
पर देखो न! कोई न आया।
मगर जब-जब किसी ने दरवाज़ा खटखटाया,
फिर मुझे तेरा ख़याल आया।
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