गीत उसका गाता हूँ
काव्य साहित्य | कविता संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’15 Nov 2023 (अंक: 241, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
वो ना मेरा था कभी
मुझसे था जुड़ा कभी
चल दिया जो छोड़ कर
दिल से दिल को जोड़ कर
दिल को मेरे तोड़ कर
मैं उसी की याद में अश्रुजल बहाता हूँ
गीत उसका गाता हूँ।
छाँव बन के धूप में थकन मेरी मिटाता था
मेरी शीतलता के लिए वृक्ष जो बन जाता था
मुझको कुछ अंनंत पथ की मंज़िलों से
जोड़ कर
चल दिया जो छोड़कर
दिल से दिल को जोड़ कर
दिल को मेरे तोड़ कर
मैं उसी की छाँव में पथिक बन सुस्ताता हूँ
गीत उसका गाता हूँ।
किस दिशा को जाना है मुझको वो बतलाता था
राह जब भटका कभी राह वो समझाता था
अब वो अपनी राह ख़ुद ही मेरे पथ से मोड़ कर
चल दिया जो छोड़ कर
दिल को दिल से जोड़ कर
दिल को मेरे तोड़ कर।
अब मैं भटकूँ राह कोई ख़ुद को ख़ुद समझाता हूँ
गीत उसका गाता हूँ।
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