अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

आज   फिर  सनम  हमें  उदास  रहने  दीजिए

2121/2121/2122/212
 
आज   फिर  सनम  हमें  उदास  रहने  दीजिए। 
दर्द भी  सनम  जिगर 'के'  पास  रहने  दीजिए।
 
इश्क़-विस्क छोड़ मौत की यहीं  अब  शक्ल है,
ज़िंदगी 'तो'  प्यास  है 'ये'  प्यास  रहने  दीजिए।
 
देश   में  चुनाव  का  लिबास  है  ये  मुफ़लिसी, 
आप   को  सलाह   ये  लिबास  रहने  दीजिए।
 
जी  रहे 'हैं'  हम  कि  वो  मुझे  कहीं है  चाहती,
दिल 'में' इक  क़यास  है  क़यास  रहने  दीजिए।
 
रात  की  तिमिर  लिये   रुला  रही  है  तिश्नगी, 
आप  जिस्म   का  यहाँ  उजास  रहने  दीजिए। 
 
कौन जी  रहा 'है'  आज  साफ़-सुथरी  ज़िंदगी, 
कांट   पर   बबूल  के,   कपास  रहने  दीजिए।
 
वो नहीं मिरे सनम  मिलन कि फिर भी आस है,
आस है  कि  जी  रहें  'हैं' आस   रहने  दीजिए।
 
कुछ नशा न हम करें, निपट न  जायें  साहिबा! 
छोड़िए  'भी'   जेब,  सौ-पचास  रहने  दीजिए।
 
जानवर   भरा   शहर   चलो  कहीं   बेघर  चलें, 
आदमी  'के' बीच  अब 'ये'  घास  रहने  दीजिए।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

 कहने लगे बच्चे कि
|

हम सोचते ही रह गये और दिन गुज़र गए। जो भी…

 तू न अमृत का पियाला दे हमें
|

तू न अमृत का पियाला दे हमें सिर्फ़ रोटी का…

 मिलने जुलने का इक बहाना हो
|

 मिलने जुलने का इक बहाना हो बरफ़ पिघले…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल

कविता

नज़्म

कविता-मुक्तक

बाल साहित्य कविता

गीत-नवगीत

किशोर साहित्य कविता

किशोर हास्य व्यंग्य कविता

विडियो

ऑडियो

उपलब्ध नहीं