मौसम बहार के
काव्य साहित्य | कविता संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
गुज़र जाते हैं जब मौसम बहार के
खिलते नहीं फिर फूल गुलज़ार के
सिसक के न घड़ियाँ बिता ज़िंदगी की
कि लौटते नहीं बीते मौसम ये प्यार के
जहाँ में न तुम मायूस हो कभी भी
जहाँ ये नहीं सिर्फ़ तेरे पुकार के
गुज़र जाते हैं जब मौसम बहार के
खिलते नहीं फिर फूल गुलज़ार के
मुहब्बत से दामन भरे-ना-भरे पर-
किसी से कभी न शिकायत करो तुम
हाँ यहाँ पे भले कोई तुम्हारा ना हो
हर पल को दिल से इबादत करो तुम
मिले झोपड़ी गर रह लो तुम ख़ुशी से
महलों की ऊँची न चाहत करो तुम
बुझाती हैं अक़्सर प्यास को नदियाँ
समंदर से देखो न आहे भरो तुम
संतुष्ट हो के रह लो सँवारो जिंदगी को
लौट आते नहीं पल जीवन शृंगार के
गुज़र जाते हैं जब मौसम बहार के
खिलते नहीं फिर फूल गुलज़ार के
मंज़िलों तक अपने वो पहुँचते-पहुँचते
गुज़र जाते हैं दिन अक़्सर सभी के
कर के फ़िक्र देखो कल का तुम अपना
गँवावो न ऐसे ये पल तुम अभी के
हर फूल को काँटों में पलना ही होता
उगे सूर्य फिर उसको ढलना ही होता
सफ़र राह लंबी भले हो पथिक का
मंज़िलों के लिये उसको चलना ही होता
निभाते हैं सब रीत अपने जगत् की
तुम रण छोड़ जीवन के भागो न हार के
गुज़र जाते हैं जब मौसम बहार के
खिलते नहीं फिर फूल गुलज़ार के
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