आसमाँ से कोई ज़मीं निकले
शायरी | ग़ज़ल संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’1 Sep 2023 (अंक: 236, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
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आसमाँ   से  कोई  ज़मीं  निकले।
शब्ज़ आँखों से फिर नमी निकले।
 
जुगनुओं  को  मैं  याद   करता  हूँ,
जब   चराग़ों  से   रौशनी  निकले।
 
आपका   जाना   यूँ   लगा   जैसे,
चाँद  के  दिल से  चाँदनी  निकले।
 
वक़्त   को   देखा   जब   बुरा  मेरे,
लोग अपने  ही  अजनबी  निकले।
 
साँस बन के थे तुम मिले फिर क्यूँ,
ख़ुदख़ुशी बन के  ज़िंदगी  निकले।
 
सोचता  हूँ   मैं   इन   फ़रिश्तों  में,
आदमी    कैसे    आदमी   निकले।
 
नाम    जो   मेरा   ले   नहीं   पाया,
दिल ‘में’ उसके भी पर हमीं निकले।
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