जीवन तेरा मूल्य जगत में कितना और चुकाना है
काव्य साहित्य | कविता संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
जाना मुझको कौन दिशा है,
कौन सी मंज़िल पानी है।
अबतक मुझको भान नहीं है,
यहाँ मेरी क्या कहानी है।
कितने घाव लगे सीने में, कितना और लगाना है!
जीवन तेरा मूल्य जगत में कितना और चुकाना है?
ख़ुद में ख़ुद मैं बड़ा भ्रमित हूँ,
कौन अपना है कौन पराया।
तेरा रचा संसार हे ईश्वर!
अबतक नहीं मुझे है भाया।
हर अपने को अपना समझा, हर अपना बेगाना है।
जीवन तेरा मूल्य जगत में कितना और चुकाना है?
जीवन है झरने का नाम,
चलते जाना इसका काम।
कभी किरदार अनोखा मिलता,
होता फिर पल में बदनाम।
क्षणिक ही सुख-दुःख की ख़ातिर, आदमी दीवाना है।
जीवन तेरा मूल्य जगत में कितना और चुकाना है?
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