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नवीन कसौटियों अस्मितामूलक विमर्श

 तमाम विमर्श को एक जगह रखने की कोशिश

 

पुस्तक: नवीन कसोटियों पर अस्मितामूलक विमर्श
संपादक: उषा कुमारी
प्रकाशक: श्वेतवर्णा प्रकाशन नई दिल्ली
वर्ष: 2023
पृष्ठ:174
मूल्य: ₹225/- 

उषा कुमारी सारण में हिंदी की प्राध्यापिका हैं। इसी हफ़्ते उनके संपादन में आई पुस्तक का नाम है—‘नवीन कसौटियों पर अस्मितामूलक विमर्श’ आमतौर पर हिंदी की जो किताबें हैं वो किसी एक-दो विमर्श को दायरे में रखकर लिखी गई हैं। उषा कुमारी की कोशिश रही है कि इस पुस्तक में तमाम नए-पुराने विमर्शों की पर्याप्त चर्चा हो। इस किताब को श्वेतवर्णा प्रकाशन ने काफ़ी ज़िम्मेदारी और तन्मयता से प्रकाशित किया है। भूमिका हिंदी की जानी-मानी शायरा डॉ. भावना की लिखी हुई है। इस पुस्तक में लगभग बीस ऐसे लेखकों की रचनाएँ हैं जो किसी न किसी नामचीन विश्वविद्यालय में शोध कार्य संपन्न कर रहे हैं, इसलिए इस पुस्तक की महत्ता और भी बढ़ जाती है। 

इसमें स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, किन्नर विमर्श, कृषक विमर्श, आदिवासी विमर्श इत्यादि पर महत्त्वपूर्ण आलेख तो हैं ही, अविनाश भारती का समकालीन हिंदी ग़ज़ल में अस्मितामूलक विमर्श नामक आलेख को भी जगह दी गई है, जिसमें हिन्दी शायरी के माध्यम से तमाम विमर्श को समेटने की कोशिश की गई है। पहली बार ऐसा हुआ है कि एक किताब को भी विमर्श के दायरे में रख कर उसका अध्ययन, मूल्यांकन और अनुशीलन किया गया है। उदाहरण के लिए ‘नगाड़े की तरह बजते हैं शब्द’ निर्मला पुतुल के दूसरे काव्य संग्रह पर विस्तार से चर्चा की गई है। 

कहना न होगा कि यह पुस्तक शोधार्थियों और शिक्षकों के लिए तो उपयोगी है ही उसके लिए भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है जो हिंदी साहित्य में चल रहे विविध विमर्श को समझने का शौक़ और ज़ौक़ रखते हैं। 

—डॉ. जियाउर रहमान जाफ़री
 स्नातकोत्तर हिंदी विभाग

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