अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

दुष्यंत के पहले के ग़ज़लकार: राधेश्याम कथावाचक 

समीक्षित पुस्तक: पंडित राधेश्याम कथावाचक की ग़ज़लें 
संपादक: हरिशंकर शर्मा 
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन जयपुर 6 
संस्करण वर्ष: 2024
मूल्य: ₹200.00
 पृष्ठ: 150 

जब भी हिंदी ग़ज़ल की बात चलती है, तो हमारा ध्यान अकस्मात्‌ दुष्यंत की तरफ़ जाता है। यह अलग बात है कि हिंदी ग़ज़ल की परंपरा पर बात करते हुए हम अमीर खुसरो, कबीर, भारतेंदु और शमशेर को भी हिंदी ग़ज़ल में जोड़ लेते हैं, पर इन सब के बीच एक और शायर आता है, जिनका नाम पंडित राधेश्याम कथावाचक (1890-1963) है। हिंदी ग़ज़ल जो दुष्यंत से पहचानी गई। यह देखकर आश्चर्य होता है कि कथावाचक की ग़ज़लें उनसे पहले की है। वह भी एक-दो की संख्या में नहीं बल्कि सौ की संख्या में है। यह अलग बात है कि हिंदी ग़ज़ल पर बात करते हुए उनका नाम कम ही लिया जाता है। या फिर यों कहें कि उनकी ग़ज़लों से अभी तक हमारा परिचय कम है। ग़ज़ल जो हरम में और बादशाहों के यहाँ पली-बढ़ी। राधेश्याम कथा वाचक उस ग़ज़ल का इस्तेमाल अपने विभिन्न प्रवचनों में करते हैं, इसलिए उनकी ग़ज़लों में भक्ति, कीर्तन, प्रार्थना, देश प्रेम आदि के तत्त्व अधिक दिखाई देते हैं; कुछ शेर आप भी देखें:

देखो तो कैसी लीला नटवर दिखा रहा है 
यमुना के तट पर बैठा बंसी बजा रहा है 
♦    ♦    ♦
 श्याम ने छवि जो दिखाई मेरा जी जानता है
 जैसी झाँकी नज़र आई मेरा जी जानता है
♦    ♦    ♦
 मुझको भाया है चपल छैल वो नंद का छौना 
 एक ही बार में राधे किया मुझ पर टोना 
♦    ♦    ♦
 वो और हैं जो तुम में संसार देखते हैं
 संसार में तुम्हीं का हम सार देखते हैं
♦    ♦    ♦
 झूठ जो चीज़ है फिर उससे मोहब्बत कैसी 
 ख़ाक हो जाए जो दम भर में वह सूरत कैसी 
♦    ♦    ♦
 हमें हज़रत तुम्हारी दिल्लगी अच्छी नहीं लगती 
 कहीं परदा कहीं बेपर्दगी अच्छी नहीं लगती 

राधेश्याम कथा वाचक के बहुत सारे जनकल्याणी कार्य भी हैं। उन्होंने मुसाफ़िरों के लिए कुएँ, यात्री पड़ाव और मंदिरों का भी निर्माण कराया था। कहते हैं कि उनका लिखा हुआ रामायण तुलसी और गुप्त के रामायण के बाद सबसे अधिक चर्चा में रहा। उनकी कथा सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे, और अपने राम काव्य में भी वह ग़ज़लों का ख़ूब इस्तेमाल करते थे, जिससे वतावरण शायराना बन जाता था। राधेश्याम कथा वाचक का समय देश की ग़ुलामी का भी है, इसलिए अँग्रेज़ों की नज़र भी उनकी ग़ज़लों पर थी। कई बार वह उसके कोपभाजन भी बने, पर लिखना जारी रखा। ग़ज़ल के साथ उन्होंने गीत और क़व्वाली वाली शैली की भी रचना की। भाषा की दृष्टि से भी उनकी ग़ज़लें हिंदी-उर्दू के बीच सेतु का काम करती हैं। उन्होंने अपनी ग़ज़लों को बेहद संजीदगी और सलीक़े से प्रस्तुत किया है। भक्ति और सूफ़ीपरक ग़ज़लों के लिए भी उनकी शायरी बेहद महत्त्वपूर्ण है। मुझे उम्मीद है कि हरिशंकर शर्मा के इस महत्त्वपूर्ण किताब के श्रमसाध्य संपादन के बाद हिंदी के ग़ज़ल आलोचकों का ध्यान राधेश्याम कथावाचक की तरफ़ अवश्य जाएगा, जिन्होंने दुष्यंत से काफ़ी पहले ही ग़ज़ल को हिंदी में स्थापित कर दिया था। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

साहित्यिक आलेख

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक चर्चा

कविता

किशोर साहित्य कविता

कविता - क्षणिका

बाल साहित्य कविता

स्मृति लेख

बात-चीत

नज़्म

ग़ज़ल

किशोर साहित्य कहानी

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. हिन्दी ग़ज़ल महत्त्व और मूल्यांकन