ग़ज़ल का परिचय
आलेख | साहित्यिक आलेख डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी15 Jun 2025 (अंक: 279, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
ग़ज़ल का आरंभ आज से लगभग 1400 साल पहले अरबी भाषा में हुआ। बाद में यह ग़ज़ल फ़ारसी से होते हुए उर्दू और फिर हिंदी में आई। ग़ज़ल को वास्तविक लोकप्रियता उर्दू भाषा से मिली, मीर, ग़ालिब इक़बाल, मोमिन और फ़िराक़ इत्यादि उर्दू के बड़े शायर हुए। हिंदी में ग़ज़ल लेखन की परंपरा भी अमीर खुसरो से मानी जाती है। कुछ लोग कबीर को हिंदी का पहला ग़ज़लकार मानते हैं। भारतेंदु की ग़ज़लें भी काफ़ी प्रसिद्ध हैं। वह ग़ज़ल के लिए रिसा अपना तख़ल्लुस रखते थे। तख़ल्लुस असल में एक उपनाम है, जो शायर ग़ज़ल के आख़िरी शेर में लगाता है। उसे आख़िरी शेर को मक़्ता भी कहते हैं। उदाहरण के लिए ये शेर देखें;
“हमारे घर की दीवारों पे नासिर
उदासी बाल खोले सो रही है”
—नासिर काज़मी
यहाँ पर शायर नासिर ने अपने उपनाम का इस्तेमाल किया है। है कि लगभग मक़्ता के शेर में तख़ल्लुस इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। यदि तख़ल्लुस का इस्तेमाल हो अथवा न हो तब भी आख़री शेर मक़्ता ही कहलाता है।
आगे चलकर छायावादी कवि निराला और प्रसाद की भी ग़ज़लें मिलती हैं। इसी दौरान शमशेर, रंग और कई द्विवेदी कालीन कवियों की की ग़ज़लें भी काफ़ी प्रसिद्ध हुईं, लेकिन हिंदी में ग़ज़ल को निर्विवाद रूप से स्थापित करने का श्रेय दुष्यंत कुमार को जाता है। उन्होंने ‘साये में धूप’ की रचना कर एक प्रकार से हिंदी कविता में ग़ज़ल को स्थापित और हमेशा के लिए ज़िंदा कर दिया।
ग़ज़ल का शाब्दिक अर्थ औरतों से बातें करना है। यह औरतें असल में प्रेयसी हैं, इसलिए उनसे प्रेम की बातें होती हैं। कालांतर में यह ग़ज़लें प्रेम के अतिरिक्त समझदारी और दुनियादारी की बातें करने लगीं। विशेष कर हिंदी ग़ज़ल ने इसे लोगों की समस्याओं और तकलीफ़ों को व्यक्त करने वाली विधा के तौर पर स्वीकृति दे दी। ग़ज़ल का अपना एक छंद विधान है। बिना उसके ग़ज़ल नहीं लिखी जा सकती। जैसे ग़ज़ल में काफ़िया और रदीफ़ का होना ज़रूरी है। इसमें छंदों का निर्वाह लाज़िमी है, शायरी में इसे बहर के नाम से पुकारा जाता है। साथ ही इसमें काफ़िया और रदीफ़ का भी पालन करना होता है। ग़ज़ल के हर शेर कथ्य की दृष्टि से अलग होते हुए इसी बहर पर अपनी ज़मीन खड़ी करते हैं। क़ाफिया और रदीफ़ को एक शेर से समझा जा सकता है:
“कल ही आया ना कोई आज ही आया कोई
मेरी क़िस्मत में कहाँ ज़ुल्फ़ का साया कोई”
यहाँ आया और साया काफ़िया है, तथा कोई रदीफ़ है। क़ाफ़िया हर शेर में बदलता रहता है, लेकिन रदीफ़ नहीं बदलता। वह हर शेर में ज्यों का त्यों रहता है। ग़ज़ल में बहर का बड़ा महत्त्व है। बहर शब्दों का एक ऐसा क्रम है, जिसमें एक ख़ास संगीत, ध्वनि, भार और अनुशासन का निर्वाह करना होता है। लेकिन महज़ छंदों के निर्वाह से ही कोई रचना ग़ज़ल नहीं हो जाती। उसमें कथ्य की मज़बूती और भावों की गहराई भी उतना ही आवश्यक है। एक ग़ज़ल कम से कम चार शेर के हो सकते हैं। आजकल एक अच्छी ग़ज़ल वह समझी जाती है जो आदमी की ज़िन्दगी और जन समस्याओं से जुड़ी हो और उसकी भाषा संप्रेषणयुक्त हो। हम कह सकते हैं कि ग़ज़ल की मानक भाषा वह है जो आम लोगों की अपनी बोल-चाल की ज़बान है। मौजूदा समय में हिंदी के कई शायर अच्छी शायरी कर रहे हैं, जिसमें ज़हीर कुरैशी, कमलेश भट्ट कमल, हरेराम समीप, अनिरुद्ध सिंहा, डॉ. भावना, उर्मिलेश, कुँवर बेचैन, विज्ञान व्रत, ओमप्रकाश यती, केपी अनमोल, अशोक अंजुम, अविनाश भारती, राहुल शिवाय, डी एम मिश्र, विनय मिश्र, ज़ियाउर रहमान जाफ़री आदि के नाम लिए जा सकते हैं। इनमें से कुछ शायर अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी ग़ज़लें हमें आज भी आंदोलित कर रही हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"लघुकथा वृत्त" का जनवरी 2019 अंक
साहित्यिक आलेख | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानीलघुकथा के इकलौता मासिक समाचार पत्र "लघुकथा…
'सौत' से 'कफ़न' तक की कथा यात्रा - प्रेमचंद
साहित्यिक आलेख | डॉ. उमेश चन्द्र शुक्लमुंशी प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1980 को…
21वीं शती में हिंदी उपन्यास और नारी विमर्श : श्रीमती कृष्णा अग्निहोत्री के विशेष संदर्भ में
साहित्यिक आलेख | डॉ. पद्मावतीउपन्यास आधुनिक हिंदी साहित्य का जीवंत रूप…
प्रेमचंद साहित्य में मध्यवर्गीयता की पहचान
साहित्यिक आलेख | शैलेन्द्र चौहानप्रेमचंद ने सन 1936 में अपने लेख "महाजनी…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
साहित्यिक आलेख
- कवि निराला की हिन्दी ग़ज़लें
- घनानंद और प्रेम
- दिनकर की कविताओं में उनका जीवन संघर्ष
- प्रसाद की छायावादी ग़ज़ल
- बिहार की महिला ग़ज़लकारों का ग़ज़ल लेखन
- मैथिली के पहले मुस्लिम कवि फ़ज़लुर रहमान हाशमी
- मैथिली खंडकाव्य ‘हरवाहक बेटी’ में फ़ज़लुर रहमान हाशमी की दृष्टि
- सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं . . .
- हिंदी ग़ज़ल का नया लिबास
- हिंदी ग़ज़लों में अंग्रेज़ी के तत्त्व
- हिन्दी ग़ज़ल की प्रकृति
- हिन्दी ग़ज़ल में दुष्यंत की स्थिति
- ग़ज़ल का परिचय
- फ़ज़लुर रहमान हाशमी की साहित्यिक विरासत
नज़्म
पुस्तक समीक्षा
- अनिरुद्ध सिन्हा का ग़ज़ल संग्रह—‘तुम भी नहीं’ भीड़ में अपनों की तलाश
- अभी दीवार गिरने दो: जन चेतना को जाग्रत करने वाली ग़ज़लें
- उम्मीद का मौसम : रामचरण 'राग' की लिखी हुई भरोसे की ग़ज़ल
- काग़ज़ की देहरी पर
- तज कर चुप्पी हल्ला बोल: ग़ज़ल में बोध और विरोध का स्वर
- दुष्यंत के पहले के ग़ज़लकार: राधेश्याम कथावाचक
- बच्चों की बाल सुलभ चेष्टाओं का ज़िक्र करती हुई किताब— मेरी सौ बाल कविताएँ
- सन्नाटे में शोर बहुत: प्यार, धार और विश्वास की ग़ज़ल
- समय से संवाद करती हुई ग़ज़ल 'वीथियों के बीच'
- हिंदी में नये लबो लहजे की ग़ज़ल: 'हाथों से पतवार गई'
- ग़ज़ल में महिला ग़ज़लकारों का दख़ल
- ग़ज़ल लेखन में एक नए रास्ते की तलाश
पुस्तक चर्चा
कविता
किशोर साहित्य कविता
कविता - क्षणिका
बाल साहित्य कविता
- अगर हम बिजली ज़रा बचाते
- अब तो स्कूल जाते हैं
- आ जाती हो
- आँखें
- करो गुरु का
- खेल खिलौने
- चमकता क्यों है
- दादी भी स्मार्ट हुईं
- दी चाँद को
- देंगे सलामी
- नहीं दूध में
- नहीं ज़रा ये अच्छे अंकल
- पेड़ से नीचे
- पढ़ना ही है
- बाहर की मत चीज़ें खाओ
- भूल गई है
- मोटी क्यों हूँ
- योग करेगी
- रिमझिम पानी
- हैप्पी बर्थ डे चलो मनायें
- हो गई खाँसी
स्मृति लेख
बात-चीत
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं