भूल गई है
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
बिल्ली रस्ता भूल गई है
मत समझो स्कूल गई है
कहा था माँ ने बिल्ली रानी
ज़रा न करना तुम मनमानी
काम है कुछ मैं कर आती हूँ
बस जंगल से घर आती हूँ
अभी तो तुम हो बिल्कुल छोटी
उम्र भी कच्ची अक़्ल भी मोटी
घर से मत तुम आना बाहर
इस जंगल में रहते अजगर
नहीं ये अच्छे सब हैं चालू
हाथी, गीदड़, चीता, भालू
जंगल भी ये बड़ा घना है
तुम्हें निकलना यहाँ मना है
पर जैसे ही मम्मी निकली
वैसे बाहर आ गई बिल्ली
दूर तलक वो चलकर आई
जंगल ख़ूब उछल कर आई
शाम हुई तो घर था जाना
पर रस्ता था वो अनजाना
नहीं मिला घर लगी वो रोने
कहाँ जाएगी अब वो सोने
याद उसे मम्मी की आई
अपनी करनी पर पछताई
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