अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

संकेत की भाषा

कौन हो तुम? 
मैं वह हूँ जिस पर ईश्वर ने
विशेष की मोहर लगाई थी, 
कर्णावर्त तंत्रिका जन्मजात
विकसित नहीं हो पाई थी। 
मेरे जन्म पर यह जान मेरी माँ
फूट फूट कर रोई थी, 
ग्लानि में कितनी रातें
एक झपकी भी नहीं सोई थी। 
 
फिर तुम कौन सी भाषा
बोलते हो और सुनते हो? 
और कौन सी भाषा में
भविष्य के सपने बुनते हो? 
 
यह ऐसी भाषा है जिसे
आम व्यक्ति शायद ही सुन सकता है। 
क्योंकि इस भाषा को सुनने के लिए
कान की नहीं ध्यान की आवश्यकता है। 
हाँ वही ध्यान जो-
दुनिया से लेने के लिए 
आपने सारे कैमरों को स्वयं की ओर मोड़ लिया है, 
आत्मलीनता आत्मजुनूनी के दौर में 
आपने इसे दूसरों की ओर देना ही छोड़ दिया है। 
 
जब मुझसे कोई कुछ कहता है
मैं उस क्षण में उपस्थित रहता हूँ, 
बात को दोहराने को कभी नहीं कहता हूँ। 
वक्ता की भावनाओं के अंदर तक झाँकता हूँ, 
अर्जुन का लक्ष्य समझ उस फोन को नहीं ताकता हूँ। 
 
जब मैं किसी से परिचय करता हूँ
उन्हें जानने के लिए 
स्वयं का पूरा अवधान संचय करता हूँ। 
नाम पूछता हूँ याद रखने के लिए
ना केवल औपचार प्रकट करने के लिए। 
हाल-चाल पूछता हूँ हृदयव्यथा घेरने के लिए 
ना कि उत्तर सुने बिना ही मुँह फेरने के लिए। 
 
भविष्य का सपना विशेष तो नहीं
पर है श्रवणीय-
नवाचार के अवसर को नई परिभाषा दिलाने का, 
हाव भाव पढ़ने की शैली को दुनिया को सिखाने का, 
भूली बिसरी सुनने की कला को फिर वापिस लाने का। 
 
पर भूल कर भी मुझे भिन्न ना समझना! 
आख़िर हूँ कृष्ण का ही रूप, 
अतिबुद्ध उपदेशक हूँ, 
पर हूँ मोहक नटखट भी, 
बहुत मज़ा आता है मुझे शोर मचाने में, 
ईश्वर ही जाने क्यों रोई थी माँ
मैं तो मदमस्त हूँ व्यस्त हूँ इतिहास रचाने में। 
 
प्रवाह के विपरीत तैरते हुए 
धाराप्रवाह आती मुझे, 
यह उँगली सञ्चालन से बनी 
दुनिया की सबसे अभिव्यंजक भाषा। 
माँ को गद्‌गद्‌ कर गर्व से भरकर
ख़ुशी के आँसू देने की आशा, 
मातृभाषा से ऊँचा स्थान रखती
मेरी यह संकेत की भाषा। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं