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प्लीज़! हैंडल विथ केयर

 

छुई मुई सी लगती है 
बिन छेड़े पिनकती है, 
भावनाओं की बदली बन 
बिन मौसम बरसती है।   
तेज़ रोशनी ऊँचे स्वर से 
तंग तंग सी फिरती है, 
दूजों द्वारा संचालित
परतंत्र पतंग सी उड़ती है। 
  
संगत इसकी ऐसी है कि
घुटन भरी सी लगती है, 
साँस जिह्वा चाल हमारी
सँभल सँभल कर चलती है।  
एक अनाम पत्र लिखने को 
यह अंगुलियाँ तरसती हैं—   
या तो चमड़ी मोटी करने की 
शल्यचिकित्सा करवा लो 
या “प्लीज़! हैंडल विथ केयर“
का मस्तक पर टैटू खुदवा लो!  
 
ढीली टिप्पणियों के मध्य 
कमल सा विराजमान, 
मात्र ढाई दशक पुराना
एक कसा हुआ विज्ञान—
कुछ चयनित का तंत्रिका तंत्र
है मूलतः असमान,  
सौ में से मात्र पंद्रह हैं 
अति-संवेदनशील इंसान। 
  
किसी कक्ष में घुसते ही 
जब दूजों को दिखती हैं
मेज़ कुर्सी ताखाएँ,  
इन चयनितों को दिखती हैं 
मित्रता शत्रुता सूक्ष्म मनोदशाएँ 
सज्जाकार के व्यक्तित्व की विशेषताएँ।  
 
हाँ! अतिउत्तेजना से
दूजों की अपेक्षा जल्दी थक जाते हैं,   
पर अतिअवशोषण से 
दूजों से चूका नकारा
सहजता से ग्रहण कर पाते हैं, 
अक़्सर रुचि के क्षेत्र में 
प्रथम अन्वेषक बन जाते हैं, 
समानुभूति से
प्रतिध्वनित नेतृत्व दिखलाते हैं
और अनायास ही
अपवादक नायक कहलाते हैं।  
 
यह संवेदना की प्रवृत्ति 
है वास्तव वंशगत 
और पूर्णतः स्थायी सामान्य।  
क्या निजी तौर पर 
जानते हो कुछ ऐसे भावपूर्व इंसान? 
तो समझना स्वयं को थोड़ा भाग्यवान 
क्योंकि शोधकार्य से है सिद्ध—
इन अल्पसंख्यंकों के बलबूते ही 
कार्यस्थल फलते हैं 
मित्रमण्डल निर्विघ्न चलते हैं
परिवार में रचनात्मक समाधान निकलते हैं।  
 
और यदि कहीं तुम ही हो
उन पंद्रह में एक ग़ैर, 
तो आओ चलो करवाते हैं 
आत्म संदेह से आत्म स्वीकृति की सैर।  
 
भूतकाल के सुप्रसिद्ध 
अविष्कारक प्रवर्तक कलाकार, 
तुम जैसे ही थे जिनमें थी 
रचनात्मकता अनुराग, 
अंतर्दृष्टि के संग संग था
देख रेख का भाव, 
मृत्युकालिक अपिरिचित से
कुछ चर्चा का चाव।   
 
पर विडंबना
कुछ ऐसी है आज,  
कि जहाँ देखो वहाँ 
योद्धाओं का राज, 
इन परामर्शदाताओं को
रत्ती भर ना पूछे यह कुपोषित समाज।  
 
मगर तुम्हें तो
सारी जानकारी है, 
यह जो सर्वव्यापी असुरक्षा 
थकावट भूख बीमारी है,     
तुम्हें तो सबकुछ दिखता है 
यह जो सामाजिक अचेतन से
अभ्यन्तर जीवन में रिक्तता है।  
तुम्हें तो स्वतः है
भविष्य का भान,  
जन्मजात सज्जित हैं
तुम में अशक्त जीवों के 
संकटों के समाधान।  
 
तो करनी होगी तुम्हें
मानव सभ्यता की पावन प्रस्तुति, 
और दिखानी होगी 
योद्धाओं के मध्य
पुरोहित की गहन उपस्थिति। 
मनाना ही होगा 
इन प्रतिभाओं का महात्यौहार,  
मिला जो है यह 
संवेदनशीलता की
महाशक्ति का दुर्लभ उपहार।   
 
तो गर्व से कर लेना
स्वयं को स्वीकार, 
कर्त्तव्य से कर लेना 
स्वयं का अलंकार, 
कुछ भी हो 
ढूँढ़ ही लेना 
एक योग्य रोशनी उचित स्वर, 
और स्वयं को कर ही लेना
“प्लीज़!  हैंडल विथ केयर।”  
  
सन्दर्भ: “The Highly Sensitive Person: How to Thrive When the World Overwhelms You”—Dr. Elaine Aron 

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