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नई नवेली प्रेमिका 


एक छवि परछाईं सी
पूछ उठी सकुचाई सी
क्या तुम्हें मुझसे प्रेम है? 
  
मैं ना छवि ना कवि
केवल एक लठ्ठमार अजनबी 
कह दिया–
इतना प्रकट प्रश्न उठाया है
स्पष्टवक्ता तो तुम अवश्य हो, 
पर प्रेम का प्रश्न तो दूर 
दर्पण देखो तो जानोगी
तुम एक भयानक दृश्य हो। 
 
अतिलज्जित वह 
सीधे पहुँची शीशमहल के द्वार
थे दर्पण दर्पण हर दीवार, 
अलग अलग मुद्राओं में
लिए रेतघड़ी आकार 
खड़ी थीं परमसुन्दरियाँ 
स्वयं को निहार। 
होड़ में उसने भी
ढूँढ़ा एक अयुगल, 
अनायास ही बोल पड़ा
वह उत्तल, 
बनना है प्रेम के योग्य 
तो कर लो केवल यह दो काम–
करके कसरत हर अंग
तोड़ दो लव हैंडल्स की पगार, 
केश नख पर लेप बहुरंग 
ओढ़ लो आधुनिक वस्त्रालंकार। 
 
चंद माह में थी मानो 
एक रूपवती तैयार, 
अवतल अवतल बोल उठा
नज़रों से बचना इस बार। 
नयी छवि में कर शृंगार 
पुनः आ गयी मेरे द्वार–
बोली अब कर ही लो स्वीकार! 
पर मैं अब भी ना छवि ना कवि
कह दिया–
काया तो पलटी सी है
पर छाया अब भी ढलती सी है, 
माना कि सविराम उपवास
योगाभ्यास कर आयी हो, 
पर ना जाने क्यों
पुनः नहीं भायी हो, 
माना कि भरपूर किया
धन व्यय बाज़ार भूषाचार, 
पर स्वीकारना ही होगा
पुनः मेरा अस्वीकार। 
 
छन से टूटी 
वह पराजित बेहाल 
पर अकस्मात् सुनाई पड़ी 
कहरवा सी ताल, 
समक्ष था एक दर्पण गुलाल 
जाना पहचाना था आकार
चार थे खंड 
और बोल गया बस यह दो छंद–
 
चाहती है
प्रेमिका का ताज, 
पर है मात्र दूजों की
पुष्टि अनुमति स्तुति की मुहताज, 
जाने क्यों
दूजों के मन में उतर कर
स्वयं की छवि सुधारती है, 
क्यों ना पहले उतार ले 
स्वयं की वह परतें
जो बेहद बनावटी हैं। 
हाँ! यह आतंरिक कार्य
है कसरत दण्ड से
कहीं अधिक दर्दनाक, 
पर विशुद्ध रूप हेतु
कायापलट नहीं 
अपितु चाहिए पुनरुत्थान। 
 
चाहती है
प्रेमी का पूरा ध्यान, 
पर है 
स्वयं से पूर्णतः अनजान, 
जाने क्यों दूजों से 
स्वयं को देखने सुनने
समझने की भिक्षा माँगती है, 
क्यों ना पहले अपने
आतंरिक अंधकारों में झाँकती है। 
हाँ! यह आतंरिक सैर
है प्रसाधन से अधिक कष्टकार, 
पर है संसार का सबसे
बहुमूल्य आभूषण-आत्मसाक्षात्कार। 
 
हर प्रस्तावी प्रश्न
स्वयं से ही उठाया था 
हर उत्तर में स्वयं को ही 
अक्षम्य पाया था। 
छवि और अजनबी 
दोनों तू ही है, 
क्योंकि स्वयं से अजनबी 
भी तू ही तो है। 
मोलभाव में महारथ 
फिर स्वयं को
इतना कम क्यों तोलती है? 
वचन वर्णन में विशेषज्ञ 
फिर स्वयं से
इतना कम क्यों बोलती है? 
 
स्वयं की अवज्ञा
भटक दर्पण दर्पण, 
अंतस तक भर लिया
एक घृणित दुर्वचन। 
आज देना
बस एक वचन–
स्वयं को 
देख लेना जी भर के 
सुनना जमा सारा ध्यान, 
समझना बिन धारणा
रखना हर भाव का भान, 
और स्वयं को
स्वयं ही दे देना 
एक नई नवेली प्रेमिका सा मान। 

सन्दर्भ:

1. A Radical Awakening: Turn Pain into Power, Embrace Your Truth, Live Free, Shefali Tsabury 
2. Power: A Woman's Guide to Living and Leading Without, Kami Nekvapil

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