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कविता कैसी लगी? 

उपहास से पूछ लो—
सवेरे उठते ही मैंने बिस्तर क्यों बनाया नहीं
दिन के दस बजे तक मैंने क्यों नहाया नहीं
और मेज़ पर जमी धूल हटाने का
मुहूर्त अब तक क्यों आया नहीं? 
 
मार दो ज़ोरदार ताने—
चाल में धमधमाहट क्यों हैं
कपड़े फूहड़ से और बाल चीकट से क्यों हैं
पर्स में सामान इतना ठूँस ठूँस कर क्यों जमाती हूँ
बिना इस्तरी किये वस्त्रों में
निर्लज्जता से दफ़्तर कैसे चली जाती हूँ? 
 
दे दो तीखी टिपण्णी—
रसोई में हाथ सुटुर सुटुर क्यों चलते हैं
प्लैटफ़ॉर्म पर चायपत्ती के निशान कैसे बनते हैं
बुनाई सिलायी में क़तई सफ़ाई क्यों नहीं है
बढ़ती उम्र संग भी स्वभाव में ठंडाई क्यों नहीं है
महाभारत के पात्र याद क्यों नहीं रहते हैं
बातों में केवल फ़िल्मीसितारे क्यों बहते हैं? 
 
पेंचीली नज़र से जाँच लो—
हिंदी वर्तनी में कितनी त्रुटियाँ हैं
अँग्रेज़ी व्याकरण में क्या क्या कमियाँ हैं
गणित के सड़े से सवाल में अंक कहाँ कटे हैं
परीक्षा के एक दिन पहले तक सारे पाठ क्यों नहीं रटे हैं
घंटों फोन पर किससे बतियाती हूँ
ऐरे ग़ैरे अभिनेता पर क्यों मोहित हो जाती हूँ? 
 
जम कर हँस दो—
मेरे यूट्यूब देखकर साड़ी बाँधने पर
दिन की दो दर्जन सेल्फ़ियों पर
मासिक धर्म का समाचार बनाने पर
रोज़मर्रा के रस्ते पर भी गूगल मैप्स लगाने पर। 
 
आज समझ नहीं आता
क्या सही क्या ग़लत
अभिव्यंजना का हुआ
कुछ ऐसा कायापलट—
उपहासमय प्रश्न बन गए सकुचाये से सवाल, 
ज़ोरदार ताने बन गए सम्भले हुए सुर तान, 
तीखी टिपण्णी बन गयी सरस बोलचाल, 
पेंचीली नज़र बन गयी समादर का निहार, 
उड़ती हुई हँसी बन गयी मुँडेर पर बैठी मुस्कान, 
आज समझ नहीं आता
क्या ग़लत क्या सही
जाने क्यों माँ को लगता
अब मैं हो गयी हूँ बहुत बड़ी। 
 
सुना है सुकवियित्री हो
तो रच लो स्वयं को
बन जाओ पहले सी निंदक सगी, 
सुना है समीक्षक भी हो 
तो बिन छन्नी बता डालो
मेरी यह कविता कैसी लगी? 

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टिप्पणियाँ

मधुलिका सक्सेना 'मधुआलोक' 2023/01/24 05:17 PM

तीखी टिपण्णी बन गयी सरस बोलचाल, पेंचीली नज़र बन गयी समादर का निहार, उड़ती हुई हँसी बन गयी मुँडेर पर बैठी मुस्कान, आज समझ नहीं आता क्या ग़लत क्या सही जाने क्यों माँ को लगता अब मैं हो गयी हूँ बहुत बड़ी। अद्भुत अभिव्यक्ति है ऋतु। कलम रसधार बहाती रहे। शुभाशीष

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