शूर! समर में जाना होगा . . .
काव्य साहित्य | कविता अभिषेक पाण्डेय1 May 2022 (अंक: 204, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
शूर, समर में जाना होगा . . .
तम, विषाद में गाना होगा,
जैसे भी हो भारत माँ का,
विजय केतु फहराना होगा।
जिस दिन जननी पद सेवा में,
अनुरक्त हुआ तूँ संन्यासी!
उस दिन से तुझको धाम शपथ,
सीमा होगी तेरी काशी।
स्मृतियों की मौन व्यथाएँ,
प्रेमलाप की करुण कथाएँ,
अंतस्थल के घाव हरे,
सबका बोझ उठाना होगा,
शूर, समर में जाना होगा . . .
भारत माता पदाक्रान्त है,
तुंग हिमालय खड़ा शांत है,
रक्तदान के महापर्व में,
अपना अंश मिलाना होगा,
शूर, समर में जाना होगा . . .
खनक चूड़ियाँ नवल वधू की,
तुझको अपने पास बुलातीं,
उमड़ उमड़ कर प्रेम भावना,
आलिंगन में गले लगातीं,
प्रणय-भावना के उपवन से,
आगे क़दम बढ़ाना होगा,
शूर, समर में जाना होगा . . .
दुःख के ठहरे उच्छवास में,
सुख के गहरे मृदुल हास में,
रखकर साक्षी भाव निरन्तर,
उठते रण के उच्चारों में,
अपना घोष मिलाना होगा,
शूर, समर में जाना होगा . . .
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