बारिश (आलोक कौशिक)
काव्य साहित्य | कविता आलोक कौशिक1 Aug 2020
कल रात जब वो आई थी घर मेरे
तब होने लगी थी बेमौसम बारिश
सिर्फ़ संयोग था बादलों का बरसना
या थी क़ुदरत की वह एक साज़िश
मिली थी वह मुझसे पिछले बरस ही
पर हम अब तक मिल ना पाए थे
महसूस किया था इश्क़ की आतिश
कल रात जब हम क़रीब आए थे
सुलगाकर मोहब्बत की अँगीठी
पिघलने लगी थी वह मेरे आग़ोश में
जब पिलाया उसने प्रेम का प्याला
रह सका ना मैं ज़रा भी तब होश में
भीग कर ठंडी हो चुकी थी सारी ज़मीं
आसमां की उल्फ़त भरी बौछार से
एक दूजे के हो चुके थे हम दोनों भी
जिस्म-ओ-जान के क़ौल-ओ-क़रार से
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