वक़्त तू थम ही जा
काव्य साहित्य | कविता अजयवीर सिंह वर्मा ’क़फ़स’1 Apr 2020 (अंक: 153, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
क़ाफ़िला तारों का अपने दामन में समेटे हुए
चाँद सा मुखड़ा अपना घूँघट में छुपाए हुए
सुर्ख़ लिबास की दमक से बदन सजाये हुए
और दुल्हन बनकर उसके आने का है इंतेज़ार
आज गीत है साज़ पर बस मिलन का है इंतेज़ार
वक़्त तू थम ही जा...
अनगिनित ख़्वाबों को आँखों में सजाये हुए
हज़ारों ख़्वाहिशों को अपने मन में बसाये हुए
और जीवन से अपने कई उम्मीदें लगाए हुए
मेरी ख़ुशी बनकर उसके आने का है इंतेज़ार
मीत है वो मेरा, बस मिलन का है इंतेज़ार
वक़्त तू थम ही जा...
हाथों में मेहंदी और पाँवों में पायल पहने हुए
और गजरे में सूरज की रश्मियाँ लिए हुए
कलाई में कंगन, माथे पर टीका पहने हुए
नख-शिख सजकर उसके आने का है इंतेज़ार
साथ मेरे है वेदी पर वो, बस मिलन का है इंतेज़ार
वक़्त तू थम ही जा...
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