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प्रेम का पुरोधा

अध्याय: 09

स्नेहमल रीता के जाने के बाद बिल्कुल अकेला रह गया था। बेटी और बेटा रीता की मौत की ख़बर सुनकर आए तो थे लेकिन उसकी तेरहवीं करके चले गए। बेटा ने उससे अपने साथ चलने की ज़िद भी की थी लेकिन उसने साथ चलने से इंकार कर दिया। उसका मन तो अपने गाँव मेंं ही लगता था। बेटा के लाख कोशिशों के बाद भी वह नहींं गया मजबूरन बेटा को अकेले ही शहर जाना पड़ा। 

अब उसे गुरुजी की दूसरी ज़िम्मेदारी याद आने लगी। गुरुजी ने अपने अंतिम समय में स्नेहमल को उनके द्वारा शुरू किए गए आध्यात्मिक आंदोलन को आगे बढ़ाने का बीड़ा सौंपा था। अब उस ज़िम्मेदारी को निभाने का समय आ गया था। अब वह संन्यास की ओर क़दम बढ़ाना चाह रहा था। इसलिए अपनी सम्पत्ति को वह अपने दोनों बच्चों के बीच बाँट देना चाहता था। अतः उसने दोनों बच्चों को बुला लिया। फिर उसने वकील को बुलाकरअपनी वसीयत दोनों के नाम लिखवाई। 

उसके बेटे ने फिर से उस से शहर चलने की ज़िद की लेकिन उसने जाने से साफ़ मना कर दिया। उसने तुलसी की चौपाई को गुनगुनाते हुए संन्यास का एलान कर दिया:

“हम चाकर रघुवीर के, पटौ लिखौ दरबार; 
अब तुलसी का होहिंगे नर के मनसबदार?” 

“और बेटा! अब वैसे भी मुझे अपने गुरुजी की दी गयी ज़िम्मेदारी निभानी है। इसलिए मेरा अब संन्यास का समय आ गया है,” स्नेहमल ने अपने बेटे को आश्वस्त करते हुए कहा। 

उसका बेटा भारी मन से शहर चला गया। पिता के इस क़दम से बेटी भी ख़ुश नहींं थी। लेकिन उसकी हठधर्मिता के कारण किसी का उस की ज़िद पर कोई वश नहींं चला। आख़िर उसने संन्यास धारण कर लिया और सर से लेकर पाँव तक पूरे शरीर पर धवल चोगा धारण कर हाथ मेंं एक झोला लेकर घर से निकल गया। 

उसका अब कोई निश्चित ठिकाना नहींं था। एक गाँव से दूसरे गाँव और फिर तीसरे, चौथे . . .  इस तरह से गाँव दर गाँव घूमना और गुरु की कही बातों को लोगों को बताना ही उसके जीवन का एक मात्र ध्येय रह गया था। उसकी कही बातों पर कुछ लोग विश्वास कर लेते तो वहीं कुछ लोग गाँव से धक्का-मुक्की कर उसे बाहर निकाल देते। लेकिन वह रमते जोगी की तरह किसी का बात का बुरा मानने की बजाय हर परिस्थिति से सीख लेते हुए आगे बढ़ लेता। 

आज ऐसा ही हुआ था एक हरिजन और पुजारी ने मिलकर गाँव वालों से धक्का-मुक्की करवाई और अंततः उसे यह गाँव भी छोड़ना पड़ा। इतना सोचता ही ही जा रहा था कि अँधेरे में गाँव के नज़दीक आते ही उसका पैर कुत्ते पर पड़ गया और कुत्ता जैसे ही एकदम चीखा तो उसकी विचार तंद्रा भंग हो गई। ग़नीमत यह रही कि कुत्ते ने उसे काटा नहींं बल्कि वह कुत्ता वहाँ से चीखते हुए चला गया। 

इस तरह भोर होते-होते वह एक नए गाँव मेंं प्रवेश कर गया। 

पुस्तक की विषय सूची

  1. अध्याय: 01
  2. अध्याय: 02
  3. अध्याय: 03
  4. अध्याय: 04
  5. अध्याय: 05
  6. अध्याय: 06
  7. अध्याय: 07
  8. अध्याय: 08
  9. अध्याय: 09
  10. अध्याय: 10
  11. अध्याय: 11
  12. अध्याय: 12 
  13. अध्याय: 13
  14. अध्याय: 14
  15. अध्याय; 15
  16. अध्याय: 16
  17. अध्याय: 17
  18. अध्याय: 18
  19. अध्याय: 19
  20. अध्याय: 20
  21. अध्याय: 21

लेखक की पुस्तकें

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