तथाकथित बुद्धिमान प्राणी
काव्य साहित्य | कविता प्रवीण कुमार शर्मा1 Sep 2021 (अंक: 188, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
शायद ईश्वर की आज्ञा पालना
के कारण नहीं चख पाया
ज्ञान का फल मैं।
शायद ईश्वर द्वारा प्रदत्त मासूमियत
के कारण नहीं सीख पाया
होशियारी और चतुरता मैं।
पर आज पछताता हूँ
इन सबके अभाव में
महसूस करता हूँ
इन सब की कमी
फिर भी हृदय से शुक्रिया
अदा करता हूँ ईश्वर का।
मुझे नहीं चाहिए ये सब:
धन-दौलत, सांसारिकता एवं साथ।
अकेला ही विचरण करना,
प्रकृति की गोद में सोना,
नदी, पक्षी, जंगल से मन बहलाना
काफ़ी है मेरे लिए।
हे पिता!
बहुत बुरी जगह है यह
और इससे भी बुरा है यह बुद्धिमान प्राणी।
इस दुनिया को अलविदा कहना चाहता हूँ मैं;
वो भी न कुछ लेकर और ना ही देकर।
हाँ,
दुखित होता हूँ
माँ की करुणामयी स्थिति को देखकर।
रोष अनायास ही फूट पड़ता है
उस शैतान की अट्टहास भरी
हँसी सुनकर।
फिर धमनियों में
रवानी उमड़ पड़ती है
दुष्ट से बदला लेने के लिए।
जो तथाकथित बुद्धिमान प्राणी
को अपने जाल में फँसा कर
हँसता है उसकी मूर्खतापूर्ण बुद्धिमत्ता पर।
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