वक़्त का पहिया
काव्य साहित्य | कविता प्रवीण कुमार शर्मा15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
दुनिया में वक़्त
वृत्ताकार घूमता है।
यह कहीं ठहरता नहीं है
यह चलता ही रहता है
और अपनी परिधि में घूमता ही रहता है
ठीक पहिए की तरह।
हर क्षण-हर पल
दिन-रात, सप्ताह, पखवाड़ा
महीना, वर्ष, शताब्दी सब
वक़्त की परिधि में ही घूम रहे हैं
सब लौट लौट कर आते हैं और जाते हैं
अपने निश्चित काल क्रम के साथ।
यहाँ तक कि युग भी
लौटते हैं अपनी निश्चित उसी काल क्रम के साथ;
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और आख़िर में
कलियुग।
फिर वही वक़्त का पहिया सतयुग पर आ जाता है
और फिर त्रेतायुग, द्वापर युग . . .
उसी काल क्रम में
वक़्त आगे बढ़ चलता है।
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