ये शहर अब कुत्तों का हो गया है
काव्य साहित्य | कविता प्रवीण कुमार शर्मा1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सारा शहर कुत्तों से अटा पड़ा है
हर चौराहे, हर नुक्कड़ पर
जिधर निगाह फेंको उधर
कुत्ते ही कुत्ते नज़र आते हैं।
लगता है शहर में
इन्सानों के साथ-साथ
कुत्तों का भी जमघट लगने लगा है।
इसलिए यह शहर अब
वफादार हो रहा है।
इंसानों पर कुत्ते
भारी पड़ रहे हैं।
तभी तो शहर की
किसी भी गली को
ही देख लो
कुत्ते जब निकलते हैं
तो इंसानों को रुकना पड़ता है
इन कुत्तों के सम्मान में।
कुत्तों के निलकने
के पश्चात ही
इंसान सड़क पर
आगे बढ़ पाता है।
तभी तो मेरे मन में
ख़्याल आया है
कि
ये शहर अब कुत्तों का
हो गया है
थोड़ा वफ़ादार हो गया है
पर कुत्तों की ही तरह
भोंकने ज़रूर लगा है।
कुछ भी हो
इस शहर में अब कुत्तों का राज हो गया है
हाँ ये थोड़ा-सा वफ़ादार हो गया है॥
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