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युवाओं का राष्ट्र के प्रति प्रेम 

युवाओं का राष्ट्र के प्रति प्रेम
तब थोथा नज़र आने लगता है:
जब वे किसी गली के नुक्कड़
पर सिगरेट के धुएँ का छल्ला बना
उड़ाते हैं। 
जब वे किसी गली के चौराहे पर
खड़े होकर किसी गुज़रती हुई लड़की
पर गंदी फब्तियाँ कस कर ठहाके लगाते हैं। 
जब किसी राष्ट्रीय सम्पत्ति पर अपनी
बपौती समझ कर तोड़ फोड़
मचाते हैं। 
जब वे सत्ता के मद में चूर होकर
भोली जनता को लूट कर उनका
मख़ौल बनाते हैं। 
जबकि होना ये चाहिए
कि जवानी की कोई
सकारात्मक कहानी होनी चाहिए। 
जवानी बड़े नसीबों से जीवन में
एक बार मिलती है
यह अपना सदुपयोग करने का मौक़ा
हर किसी को नहीं देती है। 
जवानी कुछ भी नहीं
सकारात्मक ऊर्जा की निशानी है
इसे नकारात्मक बनाना ज़्दायातर
लोगों की ज़ुबानी है। 
संसार में ऊर्जा का पर्याय
सूर्य को माना जाता है
लेकिन एक सूर्य इंसान बन कर आया था
जो ऊर्जा का पुंज बन दुनिया में फैला था
वह कोई और नहीं विवेकानंद कहलाया था। 
उसने जीवन जीया तो सकारात्मक ऊर्जा के साथ
मृत्यु को थामा भी तो जवानी के साथ। 
उसकी जवानी का लोहा इसी में था
कि लोग उसे तूफ़ान कहते थे। 
आया तो तूफ़ान की तरह
जीया भी तूफ़ान की तरह
और दुनिया से गया भी तूफ़ान की तरह। 
नकारात्मक ऊर्जा की लंबी ज़िन्दगी से बेहतर
सकारात्मक ऊर्जा की मिसाल
कवि शैली और विवेकानंद जैसा छोटा
किंतु तूफ़ानी जीवन हो
जिससे हर राष्ट्र को ऐसी जवानी पर
नाज़ हो। 

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